Rahul Vaya !
Rajasthan Election 2023: राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए 25 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. अभी तक बीजेपी ने सीएम चेहरे के नाम की घोषणा नहीं की है लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं के बीच एक नाम की काफी चर्चा है.
Rajasthan BJP CM Candidate: राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अभी तक अपने मुख्यमंत्री पद के चेहरे को घोषित नहीं किया है लेकिन एबीपी न्यूज को पुख्ता जानकारी लगी है कि वसुंधरा राजे सीएम फेस हो सकती हैं. बीजेपी के एक नेता ने बताया कि पार्टी जल्द ही राजस्थान में सीएम उम्मीदवार के रूप में वसुंधरा राजे का नाम घोषित कर सकती है.
अब तक राजस्थान में बीजेपी की रणनीति एकदम अलग थी क्योंकि बीजेपी किसी को सीएम फेस घोषित नहीं कर रही थी. चुनाव नतीजों के बाद सीएम चेहरे पर फैसला होने की खबर थी. आखिर बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव कैसे किया, पार्टी का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया और राजस्थान में वसुंधरा राजे बीजेपी के लिए जरूरी है या मजबूरी हैं, इस तरह के सवाल उठ रहे हैं.
सीक्रेट सर्वे की रिपोर्ट का हुआ असर
बीजेपी ने राजस्थान में करीब एक महीने पहले एक सर्वे कराया था. सर्वे सीक्रेट था, जिसकी रिपोर्ट भी सीक्रेट ही रखी गई. रिपोर्ट की जानकारी पार्टी के चंद बड़े नेताओं के बीच ही थी. रिपोर्ट में राजस्थान में बीजेपी की चुनावी संभावनाओं का पूरा हिसाब था.
रिपोर्ट में लिखा था कि राजस्थान नें बीजेपी कांग्रेस आगे चल रही है. यह भी बताया गया कि कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी मामूली अंतर से आगे है. इस रिपोर्ट में एक और बड़ी बात थी, जिसे देखकर बीजेपी राजस्थान की इलेक्शन स्ट्रेटजी पर दोबारा विचार करने और उसमें बड़े बदलाव के लिए सोचने लगी.
क्या थी वो बड़ी बात?
पड़ताल में यह बात सामने आई कि अगर वसुंधरा को सीएम फेस बनाया जाए तो बीजेपी को फायदा हो सकता है, यानी वोट के मामले में बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले निर्णायक बढ़त मिल सकती है. बीजेपी की रिपोर्ट जैसे ही दिल्ली पहुंची, इसका असर दिखने लगा. जो बीजेपी सीएम फेस के तौर पर किसी को एक्सेप्ट करने से बच रही थी वो अब मॉडल के तौर पर वसुंधरा का नाम ले रही है.
बता दें कि नावां में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार (7 नवंबर) को अपनी रैली के दौरान पूर्व की वसुंधरा सरकार का जिक्र करते हुए राजस्थान की मौजूदा गहलोत सरकार पर निशाना साधा.
बीजेपी में अमित शाह जैसे दिग्गज अगर कुछ कहते हैं तो उसका मतलब होता है और असर होता है. चंद दिन पहले तक सामूहिक नेतृत्व की बात करने वाले अमित शाह अगर आज वसुंधरा सरकार की चर्चा कर रहे हैं तो समझिए कि यह उसी रिपोर्ट का असर है क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में 13 सीट ऐसी थीं जहां हार जीत का अंतर 1 फीसद से कम था. 10 सीट ऐसी थीं जहां 2 फीसद से भी कम वोट से हार-जीत का फैसला हो गया और 15 सीट ऐसी थी जहां 3 फीसद से भी कम वोट से हार जीत हो गई.
ऐसे में जहां पर इतना कम मार्जिन हो, बीजेपी के दिग्गजों को लगा कि ऐसा रिस्क नहीं लेना चाहिए. ये कुल मिलाकर 38 सीटें हुईं यानी 200 सदस्यों वाली राजस्थान विधानसभा में करीब-करीब हर पाचंवी सीट पर जीत-हार का फैसला बेहद कम मार्जिन से होता है.
बैक सीट से फ्रंट सीट पर आईं वसुधंरा
राजस्थान जैसे स्टेट में जहां हर पांच साल में सरकार बदलने का रिवाज रहा है वहां 38 सीटें बेहद अहम हैं, इसलिए बीजेपी को अब राजस्थान में वसुंधरा की अहमियत का अंदाजा होने लगा है. हम जिस रिपोर्ट का जिक्र बार-बार कर रहे हैं, यह उसी का नतीजा है कि बीजेपी वसुंधरा को बैक सीट से फ्रंट सीट पर लाने को तैयार नजर आने लगी है. इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भंडारी ने कहा कि ऐसा लगता है कि वसुंधरा के नेतृत्व में ही बीजेपी चुनाव लड़ेगी.
अगस्त से साइड लाइन लग रही थीं राजे
वसुंधरा को लेकर बीजेपी लीडरशिप के इस हृदय परिवर्तन को समझना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उसके प्लान में वसुंधरा के लिए कोई जगह नहीं दिख रही थी. वसुंधरा अगस्त से ही करीब-करीब साइडलाइन लग रही थीं. यह बात जयपुर में हुए घटनाक्रम से समझी जा सकती है.
बीजेपी ने 17 अगस्त को राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए दो समितियां बनाईं. चुनाव प्रबंधन कमेटी की कमान पूर्व सांसद नारायण पंचारिया को सौंपी गई, पार्टी के 21 नेताओं को इसका मेंबर बनाया गया, स्टेट मेनिफेस्टो कमेटी की कमान अर्जुन राम मेघवाल को सौंपी गई, इसमें 25 सदस्य शामिल किए गए और वसुंधरा को इन दोनों समितियों में जगह नहीं दी गई. आम तौर पर पार्टियां अपने दिग्गज नेताओं के लिए टिकट का ऐलान पहली लिस्ट में करती हैं जबकि वसुंधरा को टिकट के लिए दूसरी लिस्ट का इंतजार करना पड़ा.
जब स्टार प्रचारकों की लिस्ट आई तो उसमें भी वसुंधरा को 24वें नंबर पर रखा गया. उनके 10 समर्थकों के टिकट काट दिए गए. इनमें उनके करीबी यूनुस खान भी हैं जो चुनावी मैदान अब निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतर चुके हैं.
मतलब ये कि किसी ने कुछ कहा नहीं लेकिन हर तरफ से यही संकेत मिले कि वसुंधरा का गेम ओवर हो चुका है. वसुंधरा खुद भी इसी तरह के मैसेज दे रही थीं लेकिन अचानक उनका अंदाज-ए-बयां बदल गया.
बदल गया वसुंधरा राजे का अंदाज-ए-बयां
3 नवंबर को वसुंधरा राजे ने झालावाड़ में कहा था, ”…मुझे लग रहा है कि मैं अब रिटायर हो सकती हूं. अगले ही दिन (4 नवंबर) उन्होंने एक सभा में कहा, ”आपको ये बहुत क्लियर करना चाहती हूं कि कहीं नहीं जा रही हूं मैं, अभी नॉमिनेशन फाइल करके ही निकल रही हूं. कहीं रिटायरमेंट की बात मत अपने ध्यान में रखना.”
क्या है वसुंधरा के बनते बिगड़ते राजनीतिक मूड की वजह?
पार्टी और राजनीति को लेकर वसुंधरा के बनते बिगड़ते मूड की वजह क्या है? इसका संकेत जयपुर में 27 सितंबर को मिला. उस दिन जयपुर में शाम 7 बजे से रात के दो बजे तक एक मीटिंग हुई, जिसमें अमित शाह, जेपी नड्डा और पार्टी के दूसरे दिग्गज भी थे लेकिन वसुंधरा नहीं थीं. उनकी नाराजगी के चर्चे चल ही रहे थे. इसलिए तरह-तरह की अटकलें भी लग रही थीं लेकिन वसुंधरा अचानक पहुंचीं.
वह बैठक में सिर्फ 15 मिनट रहीं और मुस्कुराती हुई चली गईं. वसुंधरा के करीबी बताते हैं कि उसी मीटिंग के बाद महारानी को भरोसा हो गया था कि पार्टी ने भले ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित नहीं किया लेकिन अंत में बाजी उनके पक्ष में ही रहेगी.
इन वजहों से वसुंधरा को CM फेस के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकती बीजेपी?
वसुंधरा पॉपुलर लीडर हैं. पॉपुलैरिटी के मामले में सबसे आगे हैं. महिला, राजपूत, जाट, गुर्जर और आदिवासी वोट पर उनकी पकड़ है. बीजेपी के परंपरागत ब्राह्मण और बनिया वोटर का भी समर्थन हासिल है. 70 साल की वसुंधरा राजे के पास सियासत का भी लंबा अनुभव है. अमित शाह रैलियों के जरिए वसुंधरा के शासन को मॉडल के तौर पर अब पेश भी कर रहे हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि वो राजस्थान की 200 में से 60 यानी करीब 1 तिहाई सीटों पर सीधा असर डाल सकती हैं.
वो राजस्थान की जमीनी स्थिति से भी वाकिफ हैं. यही कारण है कि बीजेपी राजस्थान जीतने के लिए पांचवीं बार वसुंधरा को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकती है. अगर औपचारिक ऐलान नहीं भी होता है, फिर भी यह तय माना जा रहा है कि राजस्थान में बीजेपी को बहुमत मिला तो पार्टी वसुंधरा को अनदेखा नहीं करेगी.