असम का राज्यपाल बनाए जाने के साथ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और उदयपुर शहर विधायक गुलाबचंद कटारिया सक्रिय राजनीति और मुख्यमंत्री की रेस से दूर हो गए हैं। समर्थक ही नहीं, सियासी विरोधी माने जाने वाले नेता-पदाधिकारी भी उन्हें बधाइयां दे रहे हैं। अब पार्टी के लिए शहर सीट और विधानसभा तक इस कद्दावर नेता जैसा मजबूत विकल्प ढूंढना चुनौती हो सकता है। हालांकि दोनों ही स्तर पर दावेदारों की फेहरिस्त लंबी-चौड़ी है।
कटारिया मेवाड़ के पांचवें और उदयपुर के दूसरे जनप्रतिनिधि हैं, जो राज्यपाल बने हैं। उनसे पहले दिवंगत मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया, जनसंघ नेता सुंदर सिंह भंडारी, रॉ के पूर्व निदेशक अरविंद दवे और उदयपुर में जन्मे सादिक अली को राज्यपाल बनाया गया था। प्रदेश में इसी साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले सक्रिय राजनीति से कटारिया की विदाई चर्चा में है। जानकार इसे पार्टी की रणनीति भी बता रहे हैं। क्योंकि अव्वल तो कटारिया 78 साल के हो चुके हैं।
यानी पार्टी की 70+ वाली लिस्ट में है। दूसरा वे भाजपा की पिछली सरकारों में गृह, शिक्षा मंत्री रह चुके हैं और वरिष्ठता के लिहाज से मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी जाने जा रहे हैं। राजनीति के विशेषज्ञों का कहना है कि इन दोनों पहलुओं के बीच साल 2018 से 2022 तक विवादित बयानों को देखते हुए पार्टी ने कटारिया को ससम्मान सक्रिय राजनीति से दूर करना तय किया है।
बता दें, कटारिया बीते वर्षों में महाराणा प्रताप, जन समस्या का उलाहना देने वाले आमजन को वोट कुएं में डालने की नसीहत, महाराणा उदयसिंह को बचाने वाले कीरत वारी को वाल्मीकि बताने और वाल्मीकि समाज के लिए प्रतिबंधित शब्द का इस्तेमाल करने जैसे बयानों से चर्चा में रहे। हालांकि उन्होंने माफी मांग कर डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी की।
कटारिया की पत्नी अनीता बोलीं- पार्टी के फैसले से हम भी चौंके
कटारिया की पत्नी अनीता कटारिया ने कहा कि हमें नहीं पता था कि ‘वे’ राज्यपाल बनेंगे। जब एक परिचित ने इसकी सूचना फोन पर दी तो मैंने उन्हें (कटारिया को) फोन कर पूछा- क्या आप असम के राज्यपाल बन गए हैं? तो उन्होंने ने भी यही कहा कि अभी नहीं पता। पार्टी राज्यपाल बनाएगी तो बन जाएंगे। बाद में इसकी पुष्टि हो सकी।
मेवाड़ से सुखाड़िया, भंडारी, दवे व अली भी बन चुके राज्यपाल
मोहनलाल सुखाड़िया
1954 से 1971 तक लगातार राजस्थान के सीएम रहे। फिर कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु के राज्यपाल रहे।
सादिक अली
1910 में उदयपुर में जन्मे अली 1977 से 1980 तक महाराष्ट्र और 1980 से 1982 तक तमिलनाडु के राज्यपाल रहे।
सुंदरसिंह भंडारी
उदयपुर में जन्मे भंडारी जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे। 1998 में बिहार व 1999 में गुजरात के राज्यपाल बने थे।
अरविंद दवे
रॉ निदेशक रहे। 1999 से 2003 तक अरुणाचल के राज्यपाल, 2002 व 2004 में मेघालय व असम के कार्यवाहक राज्यपाल रहे।
हरिदेव जोशी
बांसवाड़ा के पूर्व सीएम जोशी ने 10 मई, 1989 से 21 जुलाई, 1989 तक असम राज्यपाल का दायित्व संभाला।
शिवचरण माथुर
मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) के पूर्व सीएम माथुर को भी 4 जुलाई 2008 से 25 जून 2009 तक असम का राज्यपाल बनाया गया था।
वीपी सिंह बदनोर
भीलवाड़ा के वीपी सिंह बदनोर सिंह 22 अगस्त 2016 से 30 अगस्त 2021 तक पंजाब के राज्यपाल रहे थे।
1975 में की थी कटारिया ने राजनीति की शुरुआत।
08 बार विधायक बने। 1989 में लोकसभा में सांसद भी बने।
02 बार बड़ी सादड़ी से लड़ा चुनाव। दोनों बार विजयी रहे थे।