बड़ीसादड़ी (सुनिल मेहता कान्हा)। उपप्रवर्तनीय महासती शान्ता कुँवर ने जैन दिवाकर प्रवचन हॉल में आयोजित प्रवचन सभा मे कहा कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र बाहुबली में साठ लाख अष्टापद का एवं पुत्र भरत महाराज में चालीस लाख अष्टापद का बल था।
फिर भी ऐसे बलशाली, राज्य ओर अपार धन सम्पदा वालो ने भी सब कुछ छोड़ कर दीक्षा ग्रहण कर ली।
बाहुबली से पहले उनके 98 भाइयो ने दीक्षा ले रखी थी जो उनसे दीक्षा में बड़े थे इस लिए उनको वंदन करना पड़ेगा। लेकिन सब कुछ छोड़ दिया फिर भी बाहुबली का मान नही गया। उनको वंदन नही करुगा ओर जंगल मे जाकर ऐसी ध्यान साधना की जो इतिहास में सबसे बड़ी ओर कठिन ध्यान साधना थी। उनके शरीर पर पक्षियों ने घोसले बना दिये। लताएँ, बेले उनके ऊपर ऊगने लगी। अर्थात ऐसी ध्यान साधना की के पता ही नही चले कि इंसान है या पत्थर खड़ा है। सांस भी ले रहे है या नही। ऐसी 12 महीनों तक ध्यान साधना करने वाले अन्न जल भी ग्रहण नही करने वाले बाहुबली की साधना भी सफल नही हो रही थी। इसका प्रमुख कारण मान आड़े आ रहा था। कि में अपने भाइयों के आगे नही झुकूंगा, वंदन नही करुगा। अर्थात इन कषायो पर छदमस्त नही वीतरागी ही विजय प्राप्त कर सकते है। बाहुबली ने लोभ, क्रोध, माया ,राग ,द्वेष कुछ नही किया सिर्फ मान किया। इस लिए वो भी अभी छद्ममस्त ही थे। उनके वीतरागी बनने में सिर्फ मान ही आड़े आ रहा था।
फिर उनकी दोनो बहनों ने ब्राह्मी और सुंदरी मैं समझाया कि मान रूपी हाथी की सवारी छोड़ो ,कायरता को छोड़ो। तुम प्रभु ऋषभदेव की संतान हो। उतरो इस मान रूपी हाथी से । इतना सुनते ही संभल गए और बाहुबली ने हाथ उठाया ओर लोच की और साधु बन गए। और साधु बनते ही पांव उठाया ओर केवली बन गए। मान के जाते ही छदमस्त से बाहुबली वीतरागी बन गए। अगर आप को भी छदमस्त से वीतरागी बनना है तो कषायों को त्यागना पड़ेगा। और कषायों को नही छोड़ा तो जन्म मरण बढ़ते रहेंगे, भटकते रहेंगे और संसार सागर में गोते खाते रहेंगे।
मधुर व्याख्यानी मंगल प्रभा एवं नयन प्रभा ने घर को स्वर्ग कैसे बनाया जा सकता है विषय पर विचार रखे।