RAHUL KUMAR VAYA DUNGLA
भाजपा की होर्डिंग्स पॉलिटिक्स :
पॉलिटिक्स के भी अब कई रूप हो गए हैं। जैसे लंच-डिनर पॉलिटिक्स, मिलन समारोह पॉलिटिक्स, बयान, प्रदर्शन और होर्डिंग्स पॉलिटिक्स। पिछले सप्ताह दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी की राजस्थान इकाई में प्रदर्शन और पॉलिटिक्स देखने को मिली। पूर्व सीएम वसुंधराराजे आम तौर पर 8 मार्च को अपना जन्मदिन मनाती है। लेकिन, इस बार 4 मार्च को सालासर बालाजी में मनाया। कार्यक्रम तय होते ही पॉलिटिक्स हो गई। युवा मोर्चा ने उसी दिन गहलोत सरकार के खिलाफ प्रदर्शन का बड़ा कार्यक्रम रख दिया। ताकि लोग वहां नहीं जा पाएं। 4 मार्च को भी प्रदेश नेतृत्व का पूरा प्रयास रहा कि प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह सालासर बालाजी ना जा पाएं। इसलिए प्रदर्शन को लंबा खींचा गया। नेताओं ने दो-दो बार भाषण दिए। मामला यहीं नहीं थमा होर्डिंग पॉलिटिक्स भी हुई। करीब 4 साल तक प्रदेश मुख्यालय पर लगे होर्डिंग्स से मैडम गायब रहीं तो इस बार मैडम के खास अनुयायियों यूनुस खान, कालीचरण सर्राफ और अशोक परनामी समेत कई नेताओं ने प्रदेशाध्यक्ष जी का फोटो गायब कर दिया। अब पूनिया गुट के लोग कह रहे हैं कि मैडम के साथ ज्यादातर वही लोग हैं जिनके इस चुनाव में टिकट कटने तय हैं। फिलहाल शक्ति प्रदर्शन की रिपोर्ट आलाकमान तक पहुंच गई है। इसका असर चैत्र के नवरात्र में देखने को मिल सकता है।
पीआर कंपनियां क्या गहलोत सरकार की छवि चमका पाएंगी :
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कांग्रेस सरकार रिपीट कराने को अपनी मूंछ का सवाल बना लिया है। सरकार और मुखिया की छवि चमकाने के लिए बड़े-बड़े एक्सपर्टस के साथ पीआर कंपनियों की मदद ली जा रही है। सरकारी सोच वाले सूचना एवं जन संपर्क के विभाग पर गहलोत के मीडिया मैनेजरों को भरोसा नहीं है। चुनावी समर में वे कोई रिस्क भी नहीं लेना चाहते। इसीलिए पहले से काम कर रही मुंबई की बड़ी पीआर कंपनी के अलावा भी कुछ अन्य कंपनियों को बुलाया गया है। ये कंपनियां आईएएस अफसरों से योजनाओं की जानकारी जुटा रही हैं। भले ही स्थानीय पत्रकारों के लिए आईएएस अफसर हमेशा मीटिंग में व्यस्त रहते हैं। लेकिन, दिल्ली और मुंबई की पीआर कंपनियों के लिए वक्त ही वक्त है। किचन कैबिनेट के लोग तर्क दे रहे हैं कि पहले भी एक नामी पीआर कंपनी की सेवाएं ली गई थीं। लेकिन, वह इतना बड़ा घोटाला कर गई कि कंपनी के संचालक को जेल भेजना पड़ा। लेकिन, एक कहावत है कि बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया।
कब खुलेगा किताबों का खजाना :
जयपुर में सूचना जनसंपर्क विभाग का सूचना केंद्र दोबारा एसएमएस अस्पताल के सामने आ गया है। करीब 5 साल पहले इसे पोद्दार स्कूल में शिफ्ट किया गया था। लेकिन, लोगों को आदत एसएमएस के सामने की थी। इसलिए सूचना केंद्र दोबारा यहीं लाना पड़ा। यहां छात्र-छात्राओं के अध्ययन के लिए अलग-अलग अध्ययन कक्ष बने हैं। डीआईपीआर ने सूचना-जनसम्पर्क विभाग के अधिकारियों को भी लगा दिया है। लेकिन, यहां पर रखी दो करोड़ रुपए से अधिक की किताबों की पैकिंग कब खुलेगी यह सवाल बना हुआ है। सन 1962 से बनी अखबारों की फाइलों को सहेजकर रखा जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो किताबों की पैकिंग खुल जाएगी। किताबें वापस अलमारी में रखी जाएंगी।
आफ्टर 8 पीएम जबरो दोस्त आपणो :
करीब 12-13 साल पहले एक स्लोगन हिट हुआ था 8 पीएम, नो सीएम। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि कुछ लोगों ने इस नाम से टि्वटर हैंडल ही बना लिया। अब यह स्लोगन कुछ बदल गया है, यानि आफ्टर 8 पीएम जबरो दोस्त आपणो। जयपुर विकास प्राधिकरण यानि जेडीए में कुछ खास पेचीदा फाइलें निकलवानी हैं तो रात 8 बजे बाद जाना होगा। क्योंकि जेडीए का सैकंड फ्लोर तभी आबाद होता है। सुबह 9-10 बजे ड्यूटी पर आने वाले सेवादारों की रात 9-10 बजे तक तरोताजगी भी चर्चित है। क्योंकि कोई भी खास लोग इनकी मदद के बिना जबरो दोस्त से नहीं मिल सकता।
बिल्ली को सौंपी दूध की रखवाली :
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की विजिलेंस यानि सतर्कता विंग सचिवालय में कई दिन से खासी चर्चित है। कहा जा रहा है कि मंत्री जी ने दूध की रखवाली बिल्ली को सौंप दी है। भरतपुर में पिछले दिनों 40,000 क्विंटल गेहूं का घपला हुआ था। यह गेहूं जरूरतमंद परिवारों को बंटना था। इसकी जांच हुई तो अनियमितताओं के कारण वहां से हटाया गया था। इन डीएसओ साहब पर जो कार्रवाई होनी चाहिए थी। वह तो नहीं हुई। लेकिन, सतर्कता विभाग में जरूर बिठा दिया गया। अब वे इस फाइल पर ऐसे कुंडली मारकर बैठे हैं कि आरटीआई में सूचनाएं मांगने वाले भी तौबा कर रहे हैं। फाइल हिल ही नहीं रही है।
समरथ को नहीं दोष गोसाईंः
शहीदों की वीरांगनाओं से धरना स्थल पर जाकर मिलने और उन्हें मांगें मानने का भरोसा दिलाने वाले कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास को यह कहावत बोलनी पड़ी। वह भी अपने बॉस यानि सीएम गहलोत के लिए। क्योंकि वे वीरांगनाओं को भरोसा देकर आए थे कि देवरों को नौकरी दिए जाने की मांग पूरी हो जाएगी। लेकिन, सीएम गहलोत ने इसे नहीं माना। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। आईएएस अधिकारियों की एसीआर भरने के मुद्दे पर भी उनके साथ ऐसा ही हुआ था। एसीआर भरने का अधिकार तो नहीं मिला। लेकिन, आईएएस अफसरों ने उनसे बजट में घोषित राशन किट वाली 3000 करोड़ रुपए की योजना जरूर छीन ली। अब यह काम सहकारिता विभाग को सौंपने की तैयारी है। अब उन्हीं के विभाग के कर्मचारी बोल रहे हैं कि बॉस के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी कभी नहीं आना चाहिए। खास खबरी
(नोटः इस कॉलम में हर सप्ताह खबरों के अंदर की खबर, शासन-प्रशासन की खास चर्चाएं प्रकाशित की जाएंगी)