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सुदेव सुगुरु ओर सुधर्म पर अगर आंच भी आये तो शास्त्र पढ़ने वाला श्रावक शस्त्र भी उठा सकता है- महासती धेर्यप्रभा मसा

बड़ीसादड़ी (सुनिल मेहता कान्हा)। जैन दिवाकर सामायिक भवन में आयोजित धर्म सभा में क्रांतिकारी विचारक महासती धैर्यप्रभा ने फरमाया कि इतिहास केवल साधु साध्वियों का ही नहीं है। इतिहास श्रावक-श्राविकाओं का भी जबरदस्त रहा है। अनेक श्रावको ने अपने आप को मजबूत करके अपने धर्म को भी मजबूत किया।


आगे कहा कि आपको तीन अनमोल रत्न मिले है जो सुदेव, सुगुरु और सुधर्म इनके प्रति सच्ची आस्था ही आपके ज्ञान दर्शन और चरित्र की परिभाषा है जो आपको हर मुसीबत से बचा सकती है और आप अपना अगला भव सुधार सकते हैं।
जिनशासन के प्रति, धर्म के प्रति, और गुरुओं के प्रति जो श्रावक जिम्मेदारी समझता है फर्ज समझता है वह कहलाता है सच्चा श्रावक । आगे कहा कि जिनशासन ने तो आपको बहुत कुछ दिया। लेकिन आपने जिनशासन को क्या दिया कभी चिंतन किया। आपने हमें खाने को रोटी ओर रहने को जगह दी । लेकिन यह तो वो चीजें हैं जो नाशवान है जिन का नाश होना निश्चित है। क्या ये वस्तुएं देकर आपने अपनी जिम्मेदारी निभा ली ? नही । लेकिन हम आपको ऐसी सास्वत चीजें देते है ऐसी जिनवाणी श्रवण कराते है जो आपको भव पार लगा सकती हैं । जो आपसे कोई चुरा नहीं सकता छीन नहीं सकता। ऐसी सास्वत चीजें हम आपको देते हैं।
आगे कहा कि बड़ीसादड़ी संघ जिनशासन के प्रति अपनी ड्यूटी अच्छे से निभा रहे हैं । आप की दृढ़ निश्चयता श्रद्धा एवं भक्ति देखकर हमें बहुत प्रशन्नता है ।
आगे कहा कि इतिहास उठाकर देख लो चाहे मुगलों का राजाओं का किसी का भी राज रहा हो उसमें जैन नहीं हो ऐसा हो नहीं सकता। कोई दिवान मंत्री महामंत्री सेनापति आदि पदों पर रहे है। ऐसे- ऐसे सच्चे जैनी हुए हैं जिनके बिना काम नहीं चल सकता था।
वस्तुपाल नामक श्रावक ने राजा वीरधवल के साथ अपने जीवन काल में 63 युद्ध लड़े और सभी में विजय प्राप्त की । शास्त्र पढ़ने वाला श्रावक सुदेव सुधर्म और सुगुरु पर अगर आच भी आए तो वही श्रावक शस्त्र भी उठा लेता है। ऐसे मजबूत श्रावक एक हाथ से शास्त्र भी पढ़ लेते थे तो दूसरे हाथ से शस्त्र भी चला लेते थे। वस्तुपाल श्रावक ने एक जैन मुनि पर हाथ उठाने वाले अधर्मी राजा के हाथ को काट कर अपने घर के बाहर लटका दिया था। ऐसे अनेक श्रावक हुए है जो जिनशासन की शान थे। अर्थात जो जिनधर्म को ऊंचा रखता है वो सच्चा श्रावक होता है। आप को भी मजबूत, विवेकवान, विनयवान,एवं जिनशाशन के प्रति कर्तव्य निष्ठ श्रावक बनना है।

RISHABH JAIN
Author: RISHABH JAIN

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