भारतीय खानों में अक्सर सरसों के तेल के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरसों का तेल भारतीय मौसम के हिसाब से सेहत और सुंदरता के लिए फायदेमंद माना जाता है। यहां तक कि आयुर्वेद में भी सरसों के तेल का इस्तेमाल कई दवाइयों और उपचार में किया जाता है। सरसों के बारे में हर कोई जानता है। यह भारतीय किचन में मसाले के रूप में उपयोग होने वाली मुख्य सामग्री है। इसका इस्तेमाल अक्सर किसी खास रेसिपी बनाने या तडक़ा लगाने के लिए किया जाता है। इतना ही नहीं सरसों के तेल का इस्तेमाल भी भारतीय घरों में खूब होता है। बेहतरीन स्वाद और स्वास्थ्य लाभों के लिए लोग अलग-अलग तरह से इसका उपयोग करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, चाहे वह सरसों का तेल हो, पेस्ट हो या फिर कच्ची पत्तियां सभी हेल्दी मिनरल्स से भरपूर हैं।
यह ओमेगा 3 फैटी एसिड का भी बेहतरीन स्त्रोत है और इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। लेकिन अगर आप जरूरत से ज्यादा सरसों का सेवन करते हैं, तो इससे स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है। कई स्थितियों में यह जानलेवा तक साबित हो सकती है। अगर आप भी लंबे समय से सरसों के तेल या बीज का सेवन कर रहे हैं, तो आपको इसके साइड इफेक्ट्स के बारे में जरूर जानना चाहिए।
सरसों के तेल के नुकसान
राइनाइटिस का खतरा
सरसों के तेल के लगातार सेवन से कई लोगों को राइनाइटिस हो सकता है। राइनाइटिस में बलगम की झिल्ली में सूजन हो जाती है, जिससे खांसी, छींकना, भरी हुई नाक, नाक से पानी बहाना जैसी समस्याएं शुरू हो सकती हैं।
लंग कैंसर के लिए जिम्मेदार
सरसों के तेल में पाया जाने वाला इरूसिक एसिड फेफड़ों को भी नुकसान पहुंचाता है। दरअसल, सरसों अपर रेस्पिरेटरी सिस्टम को प्रभावित करती है, जिससे सांस लेने में मुश्किल होती है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में छपे एक अध्ययन (क्रद्गद्घ) के अनुसार, सरसों के तेल का लंबे समय तक सेवन करने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा लगातार बना रहता है।
ड्रॉप्सी रोग
ड्रॉप्सी एक खतरनाक रोग है। यह रोग तेल में पूड़ी, कचौड़ी और पकवान बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए सरसों के तेल में अर्जीमोन तेल के मिलावट, सायनाइड के मिलावट के कारण ड्रॉप्सी की संभावना ज्यादा रहती है। इसका उपयोग करने से गुर्दे, ह्रदय, आदि अंग कमजोर हो जाते हैं। इससे सादा पानी भी पचता नहीं है और शरीर में दूषित पानी जमा होने लगता है, जिससे पेट फूलने की शिकायत होती है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति के हाथ पैर फूल जाते हैं। बीएमजे जर्नल्स के अनुसार, 1998 में डॉप्सी के बढ़ते मामले को देखते हुए सरसों के तेल की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
एलर्जी की समस्या
अगर आप अपने खाने में अधिक मात्रा में सरसों के दाने या तेल का सेवन करते हैं, तो एलर्जी हो सकती है। डॉक्टरों का कहना है कि सरसों से होने वाली एलर्जी सबसे गंभीर एलर्जी में से एक है। दरअसल, इसके सेवन से हिस्टामाइन में वृद्धि के साथ एनाफिलेक्टिक शॉक भी हो सकता है। पित्ती और त्वचा पर दाने, सांस फूलना, चक्कर आना, उल्टी, गले, चेहरे और आंखों में सूजन इसके मुख्य लक्षण हैं।
दिल के रोग का खतरा
आज भी कई घरों में सरसों के तेल में खाना बनाया जाता है। लेकिन सच मानिए तो हर दिन इसका इस्तेमाल दिल की सेहत के लिए अच्छा नहीं है। क्योंकि इसमें इरूसिक एसिड बहुत ज्यादा होता है, जो दिल के लिए खतरा पैदा करता है। सरसों के अधिक उपयोग से मायोकार्डियल पिलिडोसिस की समस्या हो सकती है। जिसमें ट्राइग्लिसराइड के बनने के कारण हृदय की मांसपेशियों के मायोकार्डियल फाइबर में फाइब्रॉटिक घाव विकसित होते हैं। जो हृदय की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचाने के साथ हार्ट फेलियर के लिए भी जिम्मेदार होते हैं।
गर्भपात का कारण
अति किसी भी चीज की बुरी होती है। खासतौर से प्रेग्नेंसी में डॉक्टर्स भी सरसों से परहेज करने की सलाह देते हैं। खासतौर से गर्भवती महिलाओं को सरसों के तेल या काली सरसों के ज्यादा सेवन से बचना चाहिए। इनमें पाए जाने वाले रासायनिक यौगिक गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिए हानिकारक हैं। यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, सरसों में पाए जाने वाले कुछ रसायन गर्भपात यानी मिसकैरेज का कारण बन सकते हैं।
काली पड़ती त्वचा
सरसों के तेल की मालिश करने से कई लोगों की त्वचा पर चकत्ते हो जाते हैं। साथ ही लंबे समय तक मालिश करने से त्वचा काली भी पड़ सकती है। कई लोगों को इससे शरीर में दाने भी निकल सकते हैं।
कई रिसर्च में साबित हुआ है कि सरसों के तेल में यूरिक एसिड की उच्च मात्रा (42 प्रतिशत से 47 प्रतिशत) पाई जाती है। जिसकी वजह से अगर भारी मात्रा में इसका सेवन किया जाए तो, दिल व सांस से जुड़ी बीमारियां, दस्त, एनीमिया, कैंसर, कोमा और यहां तक कि सबसे गंभीर मामलों में मौत भी हो सकती है।