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राजस्थान का मेवाड़ इलाका – वोट आदिवासियों के पास, फिर भी सत्ता के गलियारे की कुंजी खोज ही लेते हैं राष्ट्रीय दल

आजादी और आत्मगौरव के प्रतीक महाराणा के इलाके के लोग बड़े गर्व से कहते हैं कि राजस्थान की सत्ता का रास्ता मेवाड़ से हो कर ही जयपुर तक पहुंचता है. हालांकि राज्य के कई दूसरे हिस्सों की ही तरह मेवाड़ भी महलों, महल जैसी सुविधाओं और कच्ची-पक्की पगडंडियों में जी रहे गांवों के बीच बंटा हुआ है. एक ओर महल या फिर शानदार हवेलियां हैं, जिनमें से तमाम होटलों में तब्दील हो दुनिया भर के सैलानियों को सुख सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं, तो दूसरी ओर गांव हैं. ऐसे गांव जिनके विकास के दावे और विकास कराने वायदे के बीच मतदाताओं से वोट मांगे जाते हैं. वैसे इस बार क्षेत्र से महाराणा प्रताप के खानदान से जुड़े विश्वराज सिंह को बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी समर्थकों को उम्मीद है कि उनकी पार्टी को इसका भी फायदा मिलेगा.

नाथद्वारा- महाराणा खानदान से बीजेपी प्रत्याशी
इस चुनाव में एक नया डेवलपमेंट महाराणा खानदान के विश्वराज सिंह के मैदान में उतरने से प्रचार तंत्र में जरूर दिख रहा है. लेकिन जिस नाथद्वारा सीट से विश्वराज सिंह बीजेपी से लड़ रहे हैं, वहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ सीपी सिंह विधायक हैं और इस बार भी मैदान में है. डॉ जोशी राजस्थान विधान सभा के अध्यक्ष हैं और इलाके में उनकी छवि अच्छी है. विश्वराज के आलोचकों का दावा है कि वे राजपरिवार में सिमट कर रहने वाले व्यक्ति के तौर पर जाने जाते हैं, हां अपने वर्ग या कहा जाय क्षत्रीय समाज में उनकी पकड़ अच्छी है. वैसे इनके पिता महेंद्र सिंह मेवाड़ चित्तौड़गढ़ से बीजेपी सांसद रह चुके हैं. यहां ये भी याद रखना होगा कि पहले उनके चचेरे भाई लक्ष्यराज सिंह के बीजेपी में शामिल होने की चर्चा थी. खैर ये तो इस अंचल की एक सीट भर है.

अंचल की कुल सीटें
अगर पूरे मेवाड़ वागड़ अंचल की बात की जाय तो इसमें कुल 28 सीटें आती हैं.

राजनीतिक तौर पर इस अंचल का गठन उदयपुर की 8, राजसमंद की 4, चित्तौड़गढ़ की 5, प्रतापगढ़ की 2, बांसवाड़ा की 5 और डुंगरपुर की 4 सीटों से होता है. इसमें उदयपुर में 5, डुंगरपुर में 4, प्रतापगढ़ में 2, बांसवाड़ा में 5 सीटे अनुसूचित जनजाति (ST) और चित्तौड़गढ़ की एक सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है.

फिर भी इस इलाके से पिछले चुनाव तक कांग्रेस या बीजेपी या कहा जाय, राष्ट्रीय पार्टियां ही चुनाव जीततीं रही हैं. ये जरुर है कि राष्ट्रीय दल ज्यादातर समय आदिवासियों से जुड़े मुद्दे उठाते रहते हैं. इस बार भी मानगढ़ में प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा को जोर-शोर से प्रचारित किया गया. आदिवासियों को रिझाने के लिए कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी भी मानगढ़ धाम का दौरा कर चुके हैं. कुल मिला कर इस पूरे अंचल में सभी दलों का जोर आदिवासी वोटों को अपनी ओर करने में रहता ही है.

आदिवासी वोटों की ताकत
2018 में गुजरात से आए एक राजनीतिक आदिवासी संगठन भारतीय ट्राइबल पार्टी ने इस क्षेत्र की लड़ाई में उतरा और दो सीटे भी उसके खाते में आ गईं. हालांकि राजस्थान कांग्रेस की खींचतान के दौर में इन दोनो विधायकों में भी फूट पड़ गई और एक नए दल का गठन किया गया. आदिवासियों के इस संगठन को भारतीय आदिवासी पार्टी यानी ‘बाप” का नाम दिया गया.

इस चुनाव में “बाप” ने इलाके की सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. इससे राष्ट्रीय दलों में फिलहाल एक बेचैनी है. राज्यपाल बन कर राज्य की सक्रिय राजनीति से फिलहाल अलग हो गए गुलाबचंद कटारिया ने भारतीय ट्राइबल पार्टी को नक्सली संगठन घोषित कर दिया था. साथ ही उन पर विभाजनकारी होने के आरोप भी लगाए थे. बहरहाल, आदिवासियों का अपना संगठन होने के कारण इसका ठीक ठाक असर इस चुनाव में पड़ने की उम्मीद हर ओर जताई जा रही है.

बड़े नेता
गुलाबचंद्र कटारिया को इस इलाके में बीजेपी का कद्दावर नेता माना जाता रहा है. उनके जाने के बाद बीजेपी में ये खालीपन भी दिखता है. लेकिन बीजेपी ने अब तक तकरीबन सभी राज्यों में दिखाया है कि उसे स्थानीय स्तर पर किसी बड़े नेता से ज्यादा मोदी के “चमत्कारी लोकप्रियता” पर ज्यादा भरोसा है. वही प्रयोग यहां भी चलेगा. इस अंचल में बीजेपी पार्टी टिकट पर नाथद्वारा से मैदान में उतरने वाले महाराणा खानदान के वंशज को भी अपने हक में इस्तेमाल कर सकती है.

कांग्रेस की ओर से देखा जाय तो नाथद्वारा से ही विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी पार्टी उम्मीदवार हैं. खास बात ये है कि केंद्र में मंत्री रह चुके डॉक्टर जोशी कभी खुद भी सीएम पद के दावेदार थे. लेकिन पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सांसत में आए थे, तो उन्होंने बाखूबी उन्हें उबारा और उनका साथ भी दिया. इससे उम्मीद जताई जा रही है कि वे इस इलाके में कांग्रेस के खेवनहार बनेंगे. आम आदमी पार्टी इस क्षेत्र में भी उतरने की बातें तो कर रही थी, लेकिन फिलहाल उनकी न तो कई उल्लेखनीय गतिविधि दिखी न ही पार्टी ने कोई प्रत्याशी उतार.

मुद्दों की बात
क्षेत्र में अगर मुद्दों की बात की जाय तो दर्जी कन्हैया की हत्या को अभी भी बीजेपी नेता गाहे-बगाहे उठाते रहे हैं. जून 2022 में कन्हैया की नृशंस हत्या के बाद वीडियो वायरल होने की घटना वैसे अभी भी लोगों के जेहन में है. वैसे व्यापक तौर पर बीजेपी ‘मोदी-मंत्र’ को ही आगे रखना चाहती है और जब तब कांग्रेस नेता भी इसे स्वीकर करते हैं. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी भी अपने प्रचार में कहती सुनी गईं कि “मोदी जी आकर कहते हैं कि मुझे वोट दो, मोदी जी थोड़े ही आपके मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं? वह तो प्रधानमंत्री हैं.” कांग्रेस लगातार राज्य के विकास की बातें कर रही है. आदिवासी क्षेत्रों में उसका जोर गहलोत सरकार की विकास योजनाओं के प्रचार प्रसार पर है.

पायलट फैक्टर
राज्य में कांग्रेस की ओर से गहलोत के साथ सचिन पायलट के युवा ऊर्जा की भी बात की जा रही है. हालांकि मेवाड़ इलाके में पायलट का अपना वैसा आधार नहीं है जैसा दूसरे क्षेत्रों में. लिहाजा मेवाड़ इलाका दोनों नेताओं की खींच-तान से अप्रभावित ही माना जा रहा है. इस क्षेत्र से 2018 चुनाव में कांग्रेस को 10 सीटें मिली थी जबकि बीजेपी ने 15 सीटें हासिल की थी. तीन सीटे अन्य को थी. आजादी के बाद से अब तक इस क्षेत्र ने राज्य को चार मुख्यमंत्री दिए हैं. इसमें मोहन लाल सुखाड़िया, हरदेव जोशी, शिवचरण माथुर और हीरालाल देवपुरा शामिल हैं.

Darshan-News
Author: Darshan-News

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