बड़ीसादड़ी। जैन दिवाकर सामायिक भवन में आयोजित धर्म सभा में श्रमण संघीय महासती शांता कुँवर महाराज ने फरमाया कि जब प्रथम तीर्थंकर प्रभु ऋषभदेव महाराज का समोसरण चलता था तो वह वाणी बारह कोस दूर तक सुनाई देती थी। और अंतिम तीर्थंकर प्रभु महावीर स्वामी का जब समोसरण लगता था तो वह वाणी चार कोस दूर तक सुनाई देती थी। प्रथम तीर्थंकर से लेकर अंतिम तीर्थंकर तक वाणी की दूरी घटते-घटते बारह कोस से चार कोस तक रह गई।
अर्थात इस आत्मा ने उन महापुरुषों के समोसरण में भी वाणी को सुनी लेकिन आत्मा अभी तक कोरी की कोरी रही। इसीलिए यह आत्मा अभी तक भटक और अटक रही है। इसका कारण अभी तक इस आत्मा ने धर्म को समझा ही नहीं है , धर्म को जाना ही नहीं।
चौरासी लाख योनियों में चक्कर पे चक्कर काट रही है।
आगे फरमाया कि भगवान अरिष्ठनेमी के अठारह हजार मुनियों को कृष्णचंद्र महाराज ने वंदना की । लेकिन आज अठ्ठारह मुनियो को भी हम वंदन नहीं कर सकते ।
आगे फरमाया कि कभी भी किसी को अंतराय मत दो कोई धर्म का कार्य करता है तो उसको करने दो क्योंकि खंडक मुनि ने पूर्व के भव में पन्द्रह सो प्राणियों को भोजन करने से रोका था। अंतराय दी थी। फिर इस भव में मुनि बनते ही वो क्रम उदय में आ गए। जिस कारण उनको छः महीनों तक भी गोचरी नहीं मिली।
और जब इस बात प्रभु अरिष्टनेमि के मुख से सुना तो अत्यधिक पश्चाताप हुआ। और जैसे जैसे खंधक मुनि को पश्चाताप हो रहा था , जैसे जैसे उसी वक्त कर्म टूटते गए ।और उसी वक्त केवल ज्ञान प्राप्त हो गया ।
अर्थात कभी किसी का हमारे हाथों बुरा हो भी गया हो तो उसका पश्चाताप करो। अपनी आत्मा को धिक्कारो की मेने ऐसा क्यों किया। क्या पता पश्चाताप करते -करते आप की भी आत्मा भी खंधक ऋषि की तरह पावन, निर्मल, ओर पवित्र बन जाये।
मंगल विहार हुआ
श्रमण संघीय महासती शांताकुँवर मसा आदि ठाणा-3 का दोपहर 3.15 बजे जैन दिवाकर सामायिक भवन से श्रावक- श्राविकाओं के साथ मंगल विहार किया ।
महासती मंडल ने ललित कुमार गांग परिवार की विनती को स्वीकार किया । उनके निवास पर दो दिन रुकने के भाव है। जहा पर शुक्रवार को प्रवचन सुबह 9.15 बजे से 10.15 बजे तक आयोजित होगे।