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जब मरी हुई मकड़ी ने खोला था ‘चोरी’ का राज:राजस्थान की FSL टीम का चर्चित केस, पुलिस ट्रेनिंग में भी पढ़ाया जाता है

एक मामूली सी दिखने वाली मकड़ी क्या करोड़ों के एक्साइज टैक्स की चोरी का खुलासा कर सकती है? हां, यह सच है। जयपुर की फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (FSL) की टीम ने साल 2009 में एक ऐसा ही केस सुलझाया था।

यह केस इतना चर्चित हुआ कि आज भी पुलिस ट्रेनिंग में पढ़ाया जाता है। आपने भी देखा होगा जब कोई बड़ा अपराध होता है तो हाथों में ग्लव्स पहने, लेंस-कैमरा लेकर एक टीम सबसे पहले पहुंचती है।

घटनाक्रम की बारीकी से जांच कर सबूत जुटाती है। यही एफएसएल टीम प्रदेश के कई अनसुलझे मामलों को सुलझा चुकी है। हाल ही में राज्य सरकार ने भारतीय न्याय संहिता के तहत 7 साल से अधिक सजा वाले मामलों में एफएसएल जांच को अनिवार्य किया है।

ताकि मामले की परतें आसानी से खुल सकें। ऐसे में  टीम फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी के कार्यालय पहुंची। जाना कि क्यों एफएसएल जरूरी है और कैसे एक मामूली से सबूत ने इतनी बड़ी गुत्थी को सुलझाया।

बीकानेर की कंपनी कर रही थी चालाकी

बीकानेर की एक कंपनी बिजली की हाईटेंशन लाइनों में लगने वाले सिरामिक इन्सुलेटर्स बनाने का काम करती थी। उसकी दो फैक्ट्रियां थीं। एक फैक्ट्री कम आय के तहत लघु उद्योग इंडस्ट्री में रजिस्टर्ड थी। उस पर करीब डेढ़ करोड़ तक का माल बेचने पर एक्साइज ड्यूटी नहीं लगती थी।

लेकिन कंपनी के मालिक चालाकी से लघु उद्योग की फैक्ट्री का माल अपनी दूसरी बड़ी फैक्ट्री में बनवाते थे। तैयार माल को छोटी फैक्ट्री का बताकर बेचते और इस तरह दोनों ही फैक्ट्रियों में करीब डेढ़ करोड़ तक के माल पर एक्साइज ड्यूटी की चोरी करते थे।

इस बीच सेंट्रल एक्साइज डिपार्टमेंट की टीम को जानकारी मिली कि कंपनी कई दिनों से बंद पड़ी हैं। जबकि उत्पाद शुल्क बचाने की नीयत से मालिक माल इसी फैक्ट्री में बनना बता रहे थे।

छापा मारा तो बंद मिली फैक्ट्री, लेकिन साक्ष्य नहीं थे

फरवरी, 2009 को सेंट्रल एक्साइज डिपार्टमेंट की टीम ने बंद की शिकायत वाली फैक्ट्री पर छापा मारा। जब टीम मौके पर पहुंची तो पाया कि कंपनी देखने में ही काफी समय से बंद लग रही थी। पूछने पर कंपनी के मालिक ने बताया कि मशीनरी में खराबी आ जाने के कारण बीते 8-10 दिन से काम नहीं हो रहा।

लेकिन टीम को कंपनी में लगी मशीनों पर जमी धूल मिटटी, गंदगी और फर्श आदि पर पैरों के निशान न देखकर स्पष्ट लग रहा था कि यह कई महीनों से बंद पड़ी है। टीम को इसे साबित भी करना था जिसके लिए पुख्ता सबूत भी चहिए थे। लेकिन कई बार बारीकी से जांच करने पर भी कुछ खास जानकारी हाथ नहीं लगी।

मालिक के पास एक्साइज टीम के हर सवाल का जवाब मौजूद था। मसलन जब उनसे पूछा गया कि अगर कुछ दिनों से ही बंद है तो इतनी रेत क्यों जमी हुई है तो वह बोले कि यह रेतीला इलाका है, यहां अक्सर तेज हवाओं के साथ धूल मिट्टी उड़कर आती रहती है।

मकड़ियों के जाले के लिए कहा कि ऐसी कई मकड़ियां हैं जो रोज जाल बनाती हैं और हटा देने पर अगले दिन फिर से जाल बना लेती हैं। मशीनों की हालत के बारे में वह बता ही चुके थे कि तकनीकी खराबी आने के कारण यूनिट बंद पड़ी है।

सेंट्रल एक्साइज डिपार्टमेंट की टीम को निरीक्षण करने के बावजूद कोई पुख्ता सबूत हाथ नहीं लगे। ऐसे में टीम को बैरंग ही लौटना पड़ा।

एफएसएल से किया संपर्क

इसके बाद मामले में तकनीकी सहायता लेने के लिए उस वक्त बीकानेर की मोबाइल एफएसएल टीम की भी मदद ली गई। एफएसएल मोबाइल टीम ने फैक्ट्री का निरीक्षण किया।

मशीनों, ट्रॉली, ट्रॉली व्हील, पटरी, इलेक्ट्रिक पैनल, बोर्ड समेत आसपास की अन्य चीजों के नमूने लिए। पाया कि वहां धूल की मोटी परत जमी हुई है। बावजूद इसके एफएसएल टीम यह बताने में सक्षम नहीं थी कि आखिर फैक्ट्री कब से बंद थी।

ऐसे में जयपुर एफएसएल विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर डॉ. बी. बी. अरोड़ा के निर्देश पर क्राइम सीन प्रभारी आर के चतुर्वेदी ने मौका मुआयना किया।

माल ढोने वाली ट्रॉली के पहिए और ट्रैक पर लगे मकड़ी के जालों के हाई रेजोलुशन फोटो लिए। उन फोटो को बायोलॉजी और डीएनए प्रोफाइलिंग यूनिट के वर्तमान उप निदेशक डॉ. राजेश सिंह के पास भेजा।

25 दिन में लगे गुत्थी सुलझाने में

डॉ. राजेश सिंह ने बताया कि अब मुझे उन सबूतों पर स्टडी करनी थी ताकि यह साबित हो कि फैक्ट्री कब से बंद है। एक तस्वीर में मुझे मरी हुई मकड़ी दिखाई दी। यही मेरे लिए अपराध का क्लू बन सकता था। इसलिए मकड़ी की प्रजाति, उसके जाले बनाने के पैटर्न की स्टडी शुरू की।

इसके लिए राजस्थान यूनिवर्सिटी के बायोलॉजी विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. एमपी सिंह की भी मदद ली। वे उस समय केवल मकड़ियों की विभिन्न प्रजातियों पर ही पीएचडी करवाते थे।

डॉ. राजेश बताते हैं 20-25 दिन तक राजस्थान में पाई जाने वाली मकड़ियों की सभी मुख्य प्रजातियों पर रिसर्च किया। एक दिन डॉ. एमपी सिंह ने अपने एक स्टूडेंट विजय सिहाग से मिलवाया, जिसने बीकानेर क्षेत्र में पाई जाने वाली मकड़ियों पर हाल ही में पीएचडी की थी। तब मालूम चला कि राजस्थान में बीकानेर क्षेत्र में ऐसी मकड़ियां भी पाई जाती हैं जो अपने पूरे जीवन काल में केवल एक बार ही जाला बनाती हैं।

फॉरेंसिक एंटोंमोलॉजी तकनीक से सुलझाया केस

इस जानकारी और अपनी रिसर्च के आधार पर एफएसएल टीम के डॉ. राजेश सिंह ने पाया की यह एक खास प्रजाति की आर्टीमा एटलांटा मकड़ी (Artema Atlanta Spider) थी।

हमने फैक्ट्री में मरी हुई मकड़ी को बतौर नमूना मंगवाया। फॉरेंसिक साइंस में फॉरेंसिक एंटोमोलॉजी तकनीक होती है। इस तकनीक का इस्तेमाल मृत्यु का समय और स्थान का पता लगाने में करते हैं। मृत्यु कब हुई यह शरीर के अपघटन के चरणों का पता लगता है।

मकड़ी जाल में फंसे खोल, अवशेष और बालों की माईक्रोस्कोपिक जांच में इसकी प्रजाति की पुष्टि हुई। यह भी सामने आया कि इस मकड़ी ने अपनी पूरी उम्र जी ली है। इस बीच मकड़ी को किसी दूसरे परभक्षी (प्रिडेटर) ने नहीं मारा था।

इन मकड़ियों की प्राकृतिक उम्र आमतौर पर 130 से 140 दिनों तक होती है। इसका मतलब साफ था कि मकड़ी ने वहां तीन चार महीने पहले ही जाला बना लिया था। इस आधार पर हमने अपनी रिपोर्ट तैयार की।

उसमें यह लिखा कि कंपनी जिसे 8-10 दिन से बंद बताया जा रहा था, वह कम से कम तीन महीने से बंद पड़ी थी। टीम ने अपने इस एविडेंस के आधार पर कंपनी की चालाकी को कोर्ट में साबित किया।

साथ ही यह भी बताया कि मकड़ी की हर प्रजाति के जाले बनाने का पैटर्न हाथों के फिंगर प्रिंट्स और आंखों के रेटिना की तरह यूनिक होता है।

इस तरह सेंट्रल एक्साइज डिपार्टमेंट की टीम को कई सालों से डेढ़ करोड़ की बड़ी एक्साइज ड्यूटी की चोरी का पर्दाफाश किया। यह केस अपने आप में बेहद रोचक और एफएसएल की एक महत्वपूर्ण जीत थी क्योंकि सेंट्रल एक्साइज टीम आरोपी के सामने होते हुए भी आरोप साबित नहीं कर पा रही थी।

यह केस अपने आप में नजीर

जयपुर एफएसएल विभाग के निदेशक डॉ अजय शर्मा का कहना है कि इस केस में मकड़ी की पहचान और एफएसएल टीम की रिपोर्ट के अलावा कोई सबूत नहीं था जो इस चोरी को साबित कर सकता था। एफएसएल ने वैज्ञानिक ठोस साक्ष्य के आधार पर फैक्टरी को कम से कम 3 माह से बन्द होने की रिपोर्ट दी।

राष्ट्रीय स्तर पर एक्साइज ड्यूटी की चोरी से जुड़े किसी मामले में एफएसएल टीम की ओर से इस तरह केस सुलझाने का यह अपनी तरह का संभवतः पहला मामला था। इस केस को हमने कई जगह कॉन्फ्रेंस में डिस्कस किया और जर्नल्स में भी छपवाया है। यह केस अपने आप में एक नजीर की तरह है।बायोलॉजी और डीएनए प्रोफाइलिंग यूनिट के उपनिदेशक राजेश सिंह ने बताया कि एफएसएल टीम की रिपोर्ट पर कोर्ट में सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता। निदेशक, डिप्टी डायरेक्टर और असिस्टेंट डायरेक्टर की रिपोर्ट CRPC की धारा 293 (/329 BNSS) के तहत कोर्ट में मान्य होती है।

Darshan-News
Author: Darshan-News

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