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होली की अजीब रस्‍म सरपंच की कराई जाती है दुबारा शादी स्‍थानीय महिलाएं होती है बाराती हैरान कर देने वाली डूंगला में होली की अनोखी परंपराएं

 

डूंगला । डूंगला उपखण्ड़ क्षेत्र के डूंगला मुख्यालय पर होली के अवसर पर स्थानीय महीलाओं ने

 

संरपच सोहनीबाई मीणा एवं उनके पति लालसिंह मीणा को स्थानीय महिलाओं एक दूसरे गठजोड़ बांधकर होली की अनोखी रस्म निभाकर दुबारा शादी करवाने का ठोठका किया इस पर स्थानीय ग्रामीण महिलाओं ने होली के गीत गाते हुये खुशी की गालीया दी इससे पूर्व डूंगला नगर के

फलोदड़ा सड़क मार्ग के किनारे

गाड़ौलीया लौहार बस्ती में सरंपच सोहनीबाई मीणा एवं सरपंच प्रतिनिधि लालसिंह मीणा का स्वागत किया गया एवं

धुलण्डी पर्व के अवसर डूंगला ग्राम सरंपच सोहनीबाई मीणा उनके पति लालसिंह मीणा को स्थानीय महिलाएं गीत गोते गांव के बाहर भूरी तलाई

की तरफ ले गये वहां पर दोनो की गठजोड़ बांधकर दुबारा शादी की रस्म अदा कराई है इस अवसर जल पान की व्यवस्था सरपंच की तरफ से

होली पर्व के जश्न में डूबा डूंगला , युवाओं से लेकर बड़े बुजुर्गों में दिखी पर्व की उमंग

डूंगला : हर एक त्योहार को अपने अंदाज में मनाने वाले डूंगलावासियों पर मंगलवार सुबह से ही होली के महापर्व का रंग चढ़ा दिखा. बच्चों ने जहां सुबह से ही छतों से लेकर घर आंगन व गलियों में रंग गुलाल पिचकारी और गुब्बारों से मस्ती की शुरुआत कर दी. वहीं परिवार के बड़े बुजुर्गों में भी होली को लेकर खासी उमंग देखने को मिली, जिन्होंने एक दूसरे को मिठाइयां बांटकर पर्व की खुशियों को साझा किया. इसके अलावा होली मिलन कार्यक्रमों से लेकर घरों में मस्ती और हुड़दंग के नजारे आम रहे. इसके अलवा होली पर्व के दौरान डूंगला उपखण्‍ड के विभिन्न गांवो  में सर्वधर्म समभाव की मिसालें भी देखने को मिलीं,  मिठाई खिलाकर वर्ष में एक बार आने वाले पर्व को खास बनाने में कसर नहीं छोड़ी. इधर, सुरक्षा के मद्देनजर सुरक्षा व्यवस्था भी दुरुस्त दिखी.

स्‍थानीय सरपंच सोहनीबाई मीणा  उन्होंने यहां अपने क्षेत्र के निवासियों समेत डूंगला वासियों  के साथ जमकर होली खेली. साथ ही कहा कि देश में हर एक पर्व कोई न कोई अच्छा संदेश लेकर आता है, इसी तरह से होली के बारे में यह प्रसिद्ध है कि इस खास दिवस पर वो अपने भी मिल जाते हैं, जो वक्त व हालात की मार के चलते अपनों से दूर हो जाते हैं.

भारत विभिन्न संस्कृति और सभ्यताओं का देश है। यहां हर क्षेत्र और जाति जनजातियों में अलग-अलग तरह से होली का पर्व मनाया जाता है। यही परंपराएं होली को नया रूप देती हैं और इन्हीं से रंगों के त्योहार में लोग अपनी जिंदगी को भी रंगीन बना देते हैं। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में होली का त्योहार मनाने की अपनी परंपरा है।

 

 

भारत में होली की अनोखी परंपराएं हैं जिनके बारे में शायद आपको न पता हो। भारत देश त्योहारों की भूमि है। यहां एक से एक अनोखे त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन रंगों के पर्व होली का विशेष महत्त्व है। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक पूरे देश में होली की अलग ही धूम रहती है। इसके साथ ही हमारे देश में इस त्योहार से जुड़ी अनोखी परंपराएं प्रचलित हैं जिन्हें सुनकर आप भी अचंभित हो जाएंगे। भारत की विविधता इस त्योहार की स्थान-स्थान पर बदलती परंपराओं में भी नज़र आती है। आइए नज़र डालते हैं इन अनोखी और रोचक परंपराओं पर –

महिलाओं की होली

होली का त्योहार देशभर में सब मिलकर मनाते हैं, ये किसी वर्ग विशेष या लिंग विशेष से संबंधित नहीं है। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि भारत के एक गांव में इस त्योहार को केवल महिलाएं ही मनाती हैं। यह गांव कुंडरा उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में स्थित है। यहां किसी मर्द या बच्चे को होली खेलने की अनुमति नहीं है केवल महिलाएं ही इस अवसर का आनंद उठाती हैं।

कुंडरा गांव के निवासी बताते हैं कि एक बार होली के अवसर पर वहां स्थित राम जानकी मंदिर में सब लोग उत्सव मना रहे थे। तभी कुख्यात बदमाश मेंबर सिंह ने एक युवक को गोली मार दी और तबसे वहां कई वर्षों तक किसी ने भी होली का पर्व नहीं मनाया। कुछ समय बाद गांव की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि होली पर गांव के मर्द या तो घर में बैठेंगे या कहीं बाहर चले जाएंगे और उनकी अनुपस्थिति में महिला मंडल इस त्योहार को सभी रस्मों के साथ आनंदपूर्वक मनाएगा। इसलिए यहां की होली को महिलाओं की होली कहा जाता है।

ब्रज की होली

ब्रज की लड्डू मार होली भी अपने आप में अनूठी परंपरा है। ब्रज क्षेत्र में होली किसी एक दिन का पर्व नहीं बल्कि यह वसंत पंचमी से लेकर चैत्र कृष्ण रंगपंचमी तक मनाई जाती है। ब्रज क्षेत्र के हर मंदिर में होली के गीत और भगवान के भजन गूंजते रहते हैं और नृत्य होते रहते हैं। यहां तक कि सबसे पहले भगवान कृष्ण की मूर्ति के साथ ही अबीर, रंग और गुलाल लगाकर होली खेली जाती है। होली पर भगवान कृष्ण की विशेष झांकी सजाई जाती है जिसके दर्शन पाने के लिए सभी व्याकुल रहते हैं। होली खेलने से पहले लड्डू मार होली खेलने की परंपरा है। मंदिर में मौजूद पुजारी सभी श्रद्धालुओं पर लड्डू की बरसात करते हैं जिसे भगवान का प्रसाद माना जाता है। ब्रज मंडल में फूलों का प्राकृतिक रंग इस्तेमाल किया जाता है इसलिए वहां का त्योहार सबसे मर्यादावान है। ब्रज की होली भगवान कृष्ण के प्रेम और भक्ति में डूबने का एक और अवसर प्रदान करती है।

कुंडरा गांव के निवासी बताते हैं कि एक बार होली के अवसर पर वहां स्थित राम जानकी मंदिर में सब लोग उत्सव मना रहे थे। तभी कुख्यात बदमाश मेंबर सिंह ने एक युवक को गोली मार दी और तबसे वहां कई वर्षों तक किसी ने भी होली का पर्व नहीं मनाया। कुछ समय बाद गांव की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि होली पर गांव के मर्द या तो घर में बैठेंगे या कहीं बाहर चले जाएंगे और उनकी अनुपस्थिति में महिला मंडल इस त्योहार को सभी रस्मों के साथ आनंदपूर्वक मनाएगा। इसलिए यहां की होली को महिलाओं की होली कहा जाता है।

ब्रज की होली

ब्रज की लड्डू मार होली भी अपने आप में अनूठी परंपरा है। ब्रज क्षेत्र में होली किसी एक दिन का पर्व नहीं बल्कि यह वसंत पंचमी से लेकर चैत्र कृष्ण रंगपंचमी तक मनाई जाती है। ब्रज क्षेत्र के हर मंदिर में होली के गीत और भगवान के भजन गूंजते रहते हैं और नृत्य होते रहते हैं। यहां तक कि सबसे पहले भगवान कृष्ण की मूर्ति के साथ ही अबीर, रंग और गुलाल लगाकर होली खेली जाती है। होली पर भगवान कृष्ण की विशेष झांकी सजाई जाती है जिसके दर्शन पाने के लिए सभी व्याकुल रहते हैं। होली खेलने से पहले लड्डू मार होली खेलने की परंपरा है। मंदिर में मौजूद पुजारी सभी श्रद्धालुओं पर लड्डू की बरसात करते हैं जिसे भगवान का प्रसाद माना जाता है। ब्रज मंडल में फूलों का प्राकृतिक रंग इस्तेमाल किया जाता है इसलिए वहां का त्योहार सबसे मर्यादावान है। ब्रज की होली भगवान कृष्ण के प्रेम और भक्ति में डूबने का एक और अवसर प्रदान करती है।

वृंदावन की होली

ब्रज के हर क्षेत्र में होली की अलग ही धूम रहती है। वृंदावन में फूलों की होली खेली जाती है जिसमें एक दूसरे पर पुष्पों की वर्षा करके स्नेह बांटा जाता है। यह होली का त्योहार 7-8 दिन तक मनाया जाता है जो फूलों की होली से शुरू होकर गुलाल, अबीर, सूखे रंग, गीले रंग और पानी पर जाकर समाप्त होती है।

एक दूसरे पर पुष्पों की वर्षा का दृश्य इस दुनिया का लगता ही नहीं बल्कि वह श्री कृष्ण के सामीप्य की अनुभूति कराने वाला होता है। शाम को राधा-कृष्ण के रूप में नृत्य कर रहे विभिन्न कलाकारों का प्रदर्शन भी देखने लायक होता है।

बरसाना की होली

यूँ तो होली का उत्सव अपने रंगों के लिए प्रसिद्द है लेकिन उत्तर प्रदेश की एक जगह ऐसी भी है जहां रंगों के साथ-साथ डंडों और लाठियों से भी होली खेली जाती है। जी हाँ ! आप सही समझ रहे हैं, हम बात कर रहे हैं देश-विदेश में प्रसिद्ध बरसाने की लठ्ठमार होली की।

Barsaana ki Holi

राधा कृष्ण की लीलाओं को याद करते हुए फागुन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को यह होली मनाई जाती है। इस दिन नंद गांव के युवक बरसाने जाते हैं और बरसाने के युवक नंद गांव आते हैं जिन्हें होरियारे कहा जाता है। होली की धुन में नाचते हुए युवकों का स्वागत वहां की स्त्रियां हाथों में लाठी लिए करती हैं। जैसे ही दोनों का आमना सामना होता है तो महिलाएं युवकों पर लाठियां बरसाना शुरू कर देती हैं और बीच में कुछ लोग रंग उड़ाते रहते हैं। इतना ही नहीं यदि किसी पुरुष को लाठी छू जाए तो उसे मारने वाली होरियरिन को नेग देना पड़ता है। यह पूरा दृश्य देखने लायक होता है जिसे कई देशों के अतिथि देखने आते हैं।

लठमार होली

इस होली की बरसाने के साथ पूरे देश में ही अलग पहचान है। यहां तक कि लठ्ठमार होली के मुरीद विदेशों में भी कम नहीं है। जो लोग इसका आनंद नहीं उठा पाते हैं वे टेलेविज़न पर इस नज़ारे का आनंद अवश्य उठाते हैं। जब महिलाएं लाठी से मारती हैं और पुरुष बचते हुए यहां-वहां भागते हैं तो हंसी ठिठोली का यह माहौल होली को और भी आनंदमय बना देता है। लठ्ठमार होली के पीछे की कथा कुछ इस प्रकार है कि भगवान कृष्ण जब गोपियों को होली के लिए इंतज़ार करवाते थे तो गोपियाँ नाराज़ होकर उनको लाठियों से पीटती थीं। यही परंपरा बरसाने की लड़कियों और नंद गांव के लड़कों ने आजतक कायम रखी है।

मथुरा की होली

बरसाने की लठ्ठमार होली की तरह ही मथुरा की कोड़े वाली होली भी काफी मशहूर है। यहां महिलाएं कपड़े के कोड़े बनाकर पुरुषों को मारती हैं। साथ ही रंग लगाने की परंपरा भी चलती रहती है। हंसी मजाक के इस माहौल में देसी घी के लड्डू भी बांटते हैं जो रंगोत्सव की मिठास को और बढ़ा देते हैं।

Mathura ki Holi

दंतेवाड़ा की होली रंग नहीं मिट्टी लगाते हैं लोग

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल क्षेत्र दंतेवाड़ा की होली भी अपनी अनोखी परंपरा के लिए विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि एक बार बस्तर पर आक्रमण हुआ और बस्तर की राजकुमारी के अपहरण की कोशिश की गई। तब राजकुमारी ने भाग कर दंतेश्वरी मंदिर के सामने आग जलाकर जौहर करके अपने सम्मान की रक्षा की। इसीलिए यहां होलिका दहन राजकुमारी के आग में प्रवेश करने की घटना को याद करते हुए मनाया जाता है। रंगों की जगह भी होलिका की राख और मिट्टी से ही होली खेली जाती है और अपहरण करने वालों को गालियां दी जाती हैं। दंतेवाड़ा में यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है।

तलवार वाली होली

तलवारों के साथ होली का संबंध सुनकर आपको आश्चर्य हो सकता है परंतु यह सच है। मेरठ से लगभग 12 किलोमीटर दूर बिजौली नामक गांव में होली का त्योहार सुंओं और तलवारों के साथ मनाया जाता है। इस 200 साल प्राचीन परंपरा के अनुसार गांव के निवासी होलिका दहन की राख को अपने बदन पर लगाते हैं और धुलेड़ी वाले दिन तलवारों को पेट पर बांध कर मुंह में सुंओं से घाव करते हैं। यह परंपरा आपको अजीब लग सकती है लेकिन उनके होली मनाने का यही तरीका है। यह अनोखी परंपरा किसी बाबा ने 200 वर्ष पहले शुरु की थी जिनकी समाधि आज भी गांव में है। ऐसी मान्यता है कि यदि इस परंपरा को रोक दिया जाए तो गांव को किसी प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ सकता है।

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