बड़ीसादड़ी। जैन दिवाकर प्रवचन हॉल में आयोजित धर्म सभा में श्रमण संघीय उप प्रवर्तनीय महासती शांता कुंवर ने फरमाया कि हमारी इस आत्मा ने इतनी माताओं का दूध पी लिया की उस दूध को इकट्ठा करो तो एक झील बन जाए। इस आत्मा ने कितनी ही माताओं को रुलाया है की उन आंसुओं से एक खारा समुंदर भर जाए।
इस आत्मा ने इतने शरीर छोड़े हैं कि सारी हड्डियों से एक मेरु पर्वत बन जाए और इस आत्मा ने इतने परिवार छोड़े हैं कि पूरा एक नगर बस जाएं। अर्थात कितना ही दूध पी लिया, कितनी ही माताओं को रुला दिया, कितने ही शरीर छोड़ दिए ओर कितने ही परिवार बसा लिए फिर भी इस आत्मा का उद्धार नहीं हुआ।
इतनी यह आत्मा भटककर आ गई जन्म मरण कर लिए फिर भी यह चौरासी का, जन्म मरण का चक्कर समाप्त नहीं हो रहा है। इसका प्रमुख कारण हमने अभी तक धर्म के मर्म को पहचाना नहीं ,धर्म को ह्रदय में उतारा ही नहीं है और ज्ञानियों की बातों को भी माना नहीं हे। अर्थात है मानव यह मानव का चोला बार-बार मिलने वाला नहीं है इसलिए इस मानव जीवन को सरल बना लो ,सार्थक बना लो। नहीं तो जन्म मरण बढ़ते जाएंगे चाहे कोई भी हो यह कषाय किसी को छोड़ने वाले नहीं है।आगे कहा कि चौबीस तीर्थंकरो के कुल 28 लाख 38 हजार साधु हुए।
मधुर व्यख्यानी मंगल प्रभा ने कहा कि हमें धर्म संपन्न अर्थात दृढ़ धर्मी और प्रिय धर्मी बनने का प्रयास करना चाहिए। अर्थात जब तक हम धर्म संपन्न नहीं बनेंगे तब तक हमारी आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता। इसलिए इस मनुष्य जन्म को सफल बनाने के लिए ,आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए धर्म की शरण में जितना जल्दी हो सके आ जाइए नहीं तो फिर पछताना पड़ेगा। मधुर व्यख्यानी नयनप्रभा ने भी विचार रखे।
अध्यक्षा मैना मोगरा ने बताया कि जैन दिवाकर महिला मंडल की अनेक श्राविकाओं द्वारा संवर एव श्रावक-श्राविकाओं द्वारा रोजाना सामायिक व्रत किया जा रहा है। संवर अर्थात रात्रि में स्थानक में ही सामायिक वेश में रहना होता है। महासती ठाणा ने 51-51 सामायिक साधना इस होली चातुर्मास के अंतर्गत करने का आव्हान किया है। अम्बा लाल, राजमल नागोरी परिवार की ओर से प्रभावना रखी गई।