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साप्ताहिक कॉलमः दीवारों के कान

भाजपा-कांग्रेस का भी बदलेगा भूगोल?
सीएम अशोक गहलोत ने मास्टर स्ट्रोक से एक झटके में राजस्थान का भूगोल बदल दिया। लोगों के पते बदलने के साथ ही बोल बदल गए। वहीं भाजपाइयों का तो बोल ही बंद हो गया। समझ नहीं आया क्या बयान दें। इसलिए आईटी टीम ने शगूफा चलाया कि अब राजस्थान की राजधानी कौन सी होगी। जयपुर उत्तर या जयपुर दक्षिण? जैसे ही यह सोशल मीडिया पर चला तो लोगों ने तुरंत ही कमेंट्स करके पूछ लिया कि भारत की राजधानी कौन सी है। जैसे भारत की राजधानी नईदिल्ली है, वैसे ही राजस्थान की राजधानी जयपुर ही रहेगी। इतना ही नहीं कुछ तो अभी भी कुल जिलों की संख्या के गणित में उलझे हैं कि राजस्थान में अब कुल जिले 50 होंगे या 52. नए जिलों की घोषणा के पॉलिटिकल असर को लेकर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता दबी जुबान में माना कि जिला बनने से वहां के लोग तो पागल हो ही जाते हैं। यानि, इससे कांग्रेस की सरकार रिपीट होगी या नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन, इससे कांग्रेस औऱ भाजपा का भूगोल तो बदलेगा ही। यानि कांग्रेस को पॉलिटिकल फायदा मिलेगा।
संकट में सरकारी चारणः
प्रचार महकमे के सरकारी चारण इन दिनों संकट में हैं। वजह है मनरेगा जैसा टास्क। क्योंकि जादूगर जी ने ठान लिया है कि इस बार सरकार जरूर रिपीट करानी है। ताकि अंदर-बाहर के विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके। इसलिए धड़ाधड़ घोषणाएं करने में लगे हैं। स्थिति यह है कि अगर पुनः सत्ता में वापसी की गारंटी हो तो चांद भी तोड़ कर ला सकते हैं। लेकिन, किचन कैबिनेट को प्रचार महकमे की उदासनीता अखर रही है। क्योंकि सरकारी चारण सुस्त जो हैं। राज्य के 33 जिले हैं और 33 खबरें भी जारी नहीं हो पा रही हैं। जबकि रोजाना कम से कम 100 सरकारी खबरें जारी होनी चाहिए। सो, जिलों और विभागों वाले चारणों के लिए टास्क तय कर दिया है कि रोजाना 4 रुटीन और 2 एक्सक्लूसिव खबरें जारी करनी ही हैं। अगर किसी दिन 2 एक्सक्लूसिव खबर नहीं दे पाता है तो दूसरे दिन 4 खबरें देनी होंगी। इसके बाद नोटिसबाजी शुरू हो जाएगी। इसलिए मुख्यालय के एक चारण ने कुछ नहीं सूझा तो सचिवालय की फुलवारी पर ही खबर जारी कर दी। ऊपर वालों का तर्क है कि काम तो करना ही पड़ेगा।
असली जबरो दोस्त कौनः
राजधानी जयपुर में यूं तो जयपुर विकास प्राधिकरण आयुक्त को ही जबरो दोस्त माना जाता है। लेकिन, पिछले कुछ दिनों से तोड़फोड़ शाखा वाले महाशय जबरो दोस्त बने हुए हैं। बनें भी क्यों ना। राज्य के बड़े मुखिया जी के रिश्तेदार जो ठहरे। इसलिए जेडीए में कोई भी उन्हें कुछ कहने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाता। यहां तक कि जबरो दोस्त भी नहीं। लेकिन, कुछ दिन पहले ही जेडीए में नई ज्वाइन पर आए एक अधिकारी को वहीं के कुछ सिपहसालारों ने राय दी कि एक बार तोड़फोड़ शाखा वाले जबरो दोस्त के यहां हाजरी लगा आएंं। लेकिन, वे साहब वहां कई दिन तक गए ही नहीं। जासूसों ने खोजबीन की कि आखिर ये साहब वहां हाजिरी लगाने क्यों नहीं गए। उनके स्वभाव औऱ पुराने किस्सों को सुनने के बाद तोड़फोड़ शाखा वाले जबरो दोस्त ने फोन करके खुद ही नई ज्वाइनिंग पर आए साहब के पास हाजिरी लगाई। चर्चा है कि जेडीए में अब ज्यादातर अफसरों के सुर बदले हुए हैं।
बिन मांगे मोती मिले, मांगने से नहीं मिल रहा पदः
बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना भीख। यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। लेकिन, यह इन दिनों राजस्थान की राजनीति में फिट बैठ रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनावी साल में घोषणाओं की बारिश करते हुए कहा था कि मांगते-मांगते थक जाओगे। लेकिन, मैं देता-देता नीं थकूंगा। कुछ हद तक यह सही भी है। वरना, सीएम पद बचाने के लिए विधानसभाध्यक्ष को इस्तीफा सौंपने वाले विधायकों की संख्या यूं ही 92 तक नहीं पहुंच जाती। वैसे भी पूरे राज्य में चर्चा है कि विधायक ही अपने इलाके का सीएम है। लेकिन, कांग्रेस के कुछ लोग अब चटखारे ले रहे हैं कि प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद गंवाने वाले सहयोगी कब से राज्य के मुखिया की कुर्सी मांग रहे हैं। उन पर भी मेहरबानी कर देते। उनके मांगने पर तो अब पार्टी आलाकमान भी नोटिस देने के बावजूद इस्तीफा पॉलिटिक्स करने वालों पर कार्रवाई तक नहीं कर रहा है। वैसे राज्य के मुखिया की ओर से दिल खोलकर बांटी गई सौगातों से टीवी चैनल और पीआर कंपनियों में बहार आई हुई है। राजधानी में जिधर भी गुजरो, हर तरफ मुखिया जी का ही चेहरा नजर आता है। इसकी सफलता तब है जब आने वाले विधानसभा चुनाव में वोट डालते वक्त वोटर को भी यह चेहरा याद रहे। इधर, विरोधी राग अलाप रहे हैं कि ये सिर्फ वायदे हैं और वायदों का क्या?
भाजपाइयों की बर्थ-डे पॉलिटिक्सः
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं। वैसे-वैसे बर्थ डे पॉलिटिक्स का दौर शुरू हो गया है। लेकिन, भाजपा में कुछ लोग मैडम से इतने प्रभावित हुए कि खुद के जन्मदिन पर शहर की बाहरी कॉलोनियों के साथ-साथ पार्टी मुख्यालय को जन्मदिन के होर्डिग से पाट दिया। दो पूर्व शहर अध्यक्षों में तो शक्ति प्रदर्शन जैसा हो गया। लेकिन, एक होर्डिंग को लेकर ज्यादातर लोग चकित थे। क्योंकि एक नेताजी ने अपने होर्डिंग पर खुद की और अपने अनुयायियों के अलावा किसी की फोटो नहीं लगाई। हालांकि दोनों नेताओं ने अपने बर्थ डे की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करके जताने की कोशिश की कि वे किस खेमे में हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि जन्मदिन के होर्डिंग के बहाने यह सांगानेर, मालवीय नगर, आदर्श नगर विधानसभा क्षेत्रों में टिकट की दावेदारी है। लेकिन, आलाकमान समझदार है, वह ठोक बजाकर ही टिकट देगा।

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