जयपुर। राजस्थान की सियासत में यह पहला मौका है जब शतरंज की बिसात के 64 खानों से भी ज्यादा खाने बन गए हैं। इस खेल में 64 आदमियों से भी ज्यादा का दिमाग लगता है और जीतने की कोई गारंटी नहीं होती। यही हाल राजस्थान की सियासत का भी है। शतरंज की तरह ही विधानसभा चुनावों के लिए बिछ रही बिसात में प्यादों ने तो अपनी चाल चलना शुरू भी कर दिया है, पर अभी किसी को मात नहीं दे पाए हैं। सियासत के राजा और रानी अपनी ढाई घर चाल का इंतजार कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर प्यादे खेल को आगे बढ़ा रहे हैं। इस वक्त ये प्यादे मंत्री और वजीर की भूमिका में आगे-पीछे, आड़े-तिरछे, अगल-बगल अपनी मर्जी एवं सुविधा से कई घरों तक पहुंच रहे हैं। राजस्थान में भाजपा की वसुंधराराजे और कांग्रेस की सियासत सीएम अशोक गहलोत के इर्द-गिर्द घूम रही है। यह पहला मौका है जब विपक्षी नेताओं के प्यादों ने इनको घेरे रखा है, लेकिन इनको मात देने में अब तक दोनों दलों के नेता या कहें कि वजीर विफल रहे हैं।
सोशल मीडिया पर कुछ चालें चली जा रही हैं। पिछले पांच सालों से अशोक गहलोत के खिलाफ और सचिन पायलट के पक्ष में कई वजीरों ने चालें चली हैं। नतीजा सबके सामने हैं। हाल ही सोशल मीडिया पर यह बात सामने आई है-कांग्रेस नेता सचिन पायलट आप पार्टी के नेताओं से संपर्क में हैं। वहीं यह भी कहा जा रहा है भाजपा की भी पायलट पर नजरें टिकी हुई हैं। यह चालें कितनी आगे बढ़ेंगी यह तो भविष्य की गर्त में है, लेकिन अभी दोनों ही प्रमुख दलों ने पत्ते नहीं खोले हैं।
सोशल मीडिया पर दूसरा दांव खेला गया है। एक सर्वे फार्म में नया सवाल उछाला गया है। इसमें पूछा गया है कि हनुमान बेनीवाल और आप पार्टी का समझौता हुआ तो क्या राजस्थान में सियासत इतिहास लिख देगी। हालांकि इस सवाल को सोशल मीडिया पर ही लोगों ने खारिज कर दिया है। इसमें भाजपा और बेनीवाल की ज्यादातर लोगों ने आलोचना ही की है।
जहां तक प्रदेश के दो प्रमुख लीडर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे हैं जो बिसात पर तो हैं, लेकिन अपनी ढाई घर की चाल का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि अशोक गहलोत ने उन पर हुए सियासी हमलों का ढाई घर चलकर अपनों को और गैरों को जवाब दिया है। वसुंधरा राजे की सियासी चालें बहुत ही सोच समझकर चली जा रही हैं। प्यादे भी आक्रमण और सुरक्षा दोनों की रणनीति बनाकर ही काम कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि आगे बढ़ते हुए ये प्यादे जरूरत पड़ने पर मंत्री, घोड़ा, ऊंट, हाथी कुछ भी बन सकते हैं।
बहरहाल अभी राजस्थान की सियासत में सोच समझकर चालें चली जा रही हैं। प्रदेश की सियासत उस दौर से गुजर रही है जहां अगर कोई यह सोचे कि जीत का रास्ता उसने बना लिया है तो यह संभव नहीं है क्योंकि कई बड़े लोग मैदान के बाहर से ही शह दे रहे हैं मात कब किसको मिलेगी, यह भी आगे की चालों पर निर्भर है। पार्टी स्तर पर भी आलाकमान लगातार खेल खिलाकर नेताओं के दिमाग का टेस्ट कर रहा है। कुछ लोगों ने सियासत को भी मोबाइल गेम मान लिया है जिसमें अपने कंपीटिटर को खुद चुनना होता है और जीत भी तय होती है। लोकतंत्र में खेल का रिजल्ट तो जनता ही तय करेगी।