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Politics: राजस्थान बीजेपी में 8 चेहरे सीएम पद के दावेदार, 7 महीने बाद विधानसभा चुनाव, वसुंधरा राजे पर पेंच !

राजस्थान में 7 महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं। सीकर आए पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को सीएम फेस बनाने पर बीजेपी के जीतने की सम्भावना बढ़ने की बात कहकर सियासी पारा बढ़ा दिया है। क्योंकि प्रदेश में सीएम फेस के 8 बड़े दावेदार हैं।

राजस्थान में 7 महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं। सीकर आए पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को सीएम फेस बनाने पर बीजेपी के जीतने की सम्भावना बढ़ने की बात कहकर सियासी पारा बढ़ा दिया है। क्योंकि प्रदेश में सीएम फेस के 8 बड़े दावेदार हैं।

छले 30 साल का ट्रैक रिकॉर्ड देखें, तो राजस्थान में एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की सरकार बारी-बारी से बनती रही है। इसलिए प्रॉबेबिलिटी कहें या केंद्र की मोदी सरकार की बीजेपी लहर, राजस्थान में एक बार फिर बीजेपी नेताओं-कार्यकर्ताओं में सत्ता में आने की सुगबुगाहटें तेज हैं। लेकिन सीएम फेस कौन होगा ? यह अभी तक तय नहीं होने के कारण बीजेपी के कार्यकर्ता बहुत कंफ्यूजन में हैं । क्योंकि पिछले दो बार से पूर्व सीएम रहीं वसुंधरा राजे को पार्टी नेतृत्व ने काफी समय तक साइडलाइन रखा। इसलिए कार्यकर्ता समझ नहीं पा रहा कि उसे किस नेता को फॉलो कर अपना सियासी भविष्य तलाशना है। लेकिन अब वसुंधरा राजे के लिए लॉबिंग और समर्थकों की दावेदारी तेज होने लगी है। इसमें कई विधायकों, पूर्व विधायकों, सांसदों, पूर्व सांसदों के साथ अब पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक का भी नाम जुड़ गया है। जिन्होंने सीकर में कहा कि वसुंधरा राजे को राजस्थान में सीएम फेस घोषित किया जाए, तो बीजेपी के जीतने की सम्भावना बढ़ जाएगी।

सीएम फेस घोषित करने पर गुटबाजी और कलह बढ़ने का डर

राजस्थान बीजेपी में स्वाभाविक तौर पर दो बार की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के साथ ही करीब 8 नेता सीएम फेस के दावेदार हैं। लेकिन पार्टी हाईकमान को चिन्ता है कि राजस्थान में कोई अप्रत्याशित सीएम फेस घोषित कर दिया गया, तो बीजेपी नेताओं में चुनाव से पहले गुटबाजी और अंदरूनी कलह बढ़ जाएगी। जो पार्टी को विधानसभा चुनाव से पहले बड़े स्तर पर डैमेज कर सकती है। इसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव भी हैं, इसलिए राजस्थान जीतना बीजेपी के महत्वपूर्ण है। राजस्थान के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार है। दोनों जगह बीजेपी अबकी बार कांग्रेस से सत्ता छीनना चाहती है। इसीलिए पार्टी ने सतीश पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष पद से हटाकर उनके विरोधियों और गुटबाजी पर काफी हद तक लगाम लगाने की कोशिश भी की है। लेकिन साथ ही पूनिया को उपनेता प्रतिपक्ष का जिम्मा और राजेंद्र राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा सौंपकर फिलहाल वसुंधरा राजे को राजस्थान में कोई पद नहीं दिया गया है। हालांकि प्रदेश बीजेपी कोर कमेटी में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल, कैलाश चौधरी, सांसद किरोड़ीलाल मीणा, प्रदेशाध्यक्ष और सांसद सीपी जोशी समेत कई नेता शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर सीएम फेस के दावेदार हैं।

राजस्थान बीजेपी में सीएम फेस के 8 दावेदार चेहरे

1.वसुंधरा राजे सिन्धिया-  

बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे सिन्धिया राजस्थान में 2 बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। 5 बार विधायक रह चुकी हैं और 5 बार राजस्थान से लोकसभा सांसद भी रही हैं। वसुंधरा राजे केंद्र सरकार में एक्सटर्नल अफेयर्स राज्यमंत्री और स्मॉल स्केल मंत्रालय की भी राज्य मंत्री रह चुकी हैं। वह झालावाड़ के झालरापाटन से फिलहाल विधायक हैं।  सीएम गहलोत से पहले वसुंधरा राजे ही प्रदेश की बीजेपी सरकार में मुख्यमंत्री रही हैं। इसलिए स्वाभाविक तौर पर वह मुख्यमंत्री पद की मजबूत दावेदार हैं। वसुंधरा राजे के समर्थक प्रदेशभर में हैं। वह प्रदेश में सक्रिय बनी हुई हैं। विपक्ष में रहते हुए प्रदेश में लगातार सामाजिक-धार्मिक और देवदर्शन यात्राएं कर रही हैं। राजे विपक्ष में रहकर चुनावी साल में सत्ताविरोधी लहर को बीजेपी के पक्ष में अपने नेतृत्व में बदलने में पिछले दो कार्यकालों में कामयाब रही हैं। वसुंधरा राजे के खेमे में अभी भी बहुत से विधायक और पूर्व विधायक हैं। वसुंधरा राजे राजस्थान में बीजेपी की लुटिया तैराने और डुबाने दोनों तरह के काम कर सकती है, पार्टी हाईकमान को भी यह बात अच्छे से मालूम है। लेकिन वसुंधरा राजे पक्की भाजपाई हैं और हाईकमान के खिलाफ जाकर कोई निर्णय नहीं लेंगी, ऐसी पार्टी हाईकमान को भरोसा है।

लेकिन वसुंधरा राजे और उनके खेमे के लिए चिन्ताजक यह है कि पिछली बार उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। लेकिन अबकी बार यह जिम्मा नहीं सौंपा गया। विरोधी खेमा भी एक्टिव है। जो वसुंधरा राजे के लिए लगातार रोड़ा बना हुआ है।  बीजेपी ही नहीं कांग्रेस में भी सचिन पायलट उन्हें घेर रहे हैं। पिछली वसुंधरा सरकार के समय हुए घोटाले और भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग पर अनशन और प्रेसवार्ता कर पायलट ने भी वसुंधरा को नुकसान पहुंचाया है।  पायलट की गुर्जर समाज और युवाओं में अच्छी छवि मानी जाती है। ऐसे में वसुंधरा राजे को पायलट ने भी जनता ने नेरेटिव सेट कर उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया है। वसुंधरा राजे के पिछले कार्यकाल के वक्त पीएम की झुंझुनूं रैली में वसुंधरा राजे के खिलाफ और पीएम मोदी के पक्ष में युवाओं ने नारेबाजी की थी। वह भी आज तक चर्चा का विषय बना हुआ है। बीजेपी में युवा चेहरों को आगे लाने की मुहिम भी चल रही है। वसुंधरा राजे का जन्म 8 मार्च 1953 का है। वह 70 साल की हो चुकी हैं। 70 पार वाले नेताओं को बीजेपी नेतृत्व पिछले काफी वक्त से किसी राज्य में सीएम नहीं बना रहा है, बनिस्बत युवा चेहरों को आगे लाया जा रहा है ।

2.राजेंद्र राठौड़- 

राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए गए राजेंद्र राठौड़ बीजेपी विधायक दल को अब लीड कर रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने काफी सोच विचारकर ही उन्हें उपनेता से नेता प्रतिपक्ष बनाया है। राजेंद्र राठौड़ 7 बार के विधायक हैं। फिलहाल वह चूरू विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। राजेंद्र राठौड़ एडवोकेट भी हैं, गहलोत खेमे के विधायकों के सामूहिक इस्तीफे के मामले में उन्होंने खुद पैरवी करते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी लगाई। राजेंद्र राठौड़ सदन में मजबूती के साथ कांग्रेस सरकार को घेरने के लिए पहचाने जाते हैं। वह दमदार और तेजतर्रार नेता के रूप में पहचान रखते हैं। पूर्व सीएम और उपराष्ट्रपति रहे स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत के बाद से बीजेपी को राजस्थान में राजपूत लीडरशिप की भी तलाश थी, राजेंद्र राठौड़ उस लिहाज से तमाम समीकरणों पर फिट बैठते हैं। सोच विचारकर और बहुत नपा-तुला बोलते हैं। राजेंद्र राठौड़ के समर्थक लगातार शक्ति प्रदर्शन भी करके दम दिखा चुके हैं। 21 अप्रैल को राजेंद्र राठौड़ के जन्मदिन पर सर्वाधित बल्ड डोनेशन करके उनके समर्थकों ने राजेंद्र राठौड़ का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज कराया है। राठौड़ मंझे हुए और अनुभवी नेता हैं। पार्टी के टॉप नेताओं में उनकी गिनती होती है। राठौड़ पूर्व में बीजेपी सरकारों में चिकित्सा विभाग, संसदीय कार्य विभाग, विधि जैसे विभागों के मंत्री भी रह चुके हैं। विधानसभा और फील्ड दोनों जगह राठौड़ एक्टिव रहते हैं और आंदोलनों में भी सक्रिय रूप से हिस्सा लेते हैं। खास बात यह है कि राठौड़ सभी खेमों और नेताओं से तालमेल बैठाकर लगातार चल रहे हैं। उनकी ट्रेनिंग भैरोंसिंह शेखावत जैसे कद्दावर नेता से हुई है।
हालांकि राठौड़ के लिए चिन्ता की बात यह है कि उनकी पार्टी में इंटरनली नेताओं के साथ क्रिेडिबिलिटी पर सवाल खड़े होते रहे हैं। राठौड़ को पहले वसुंधरा राजे खेमे में माना जाता था। लेकिन बाद में उन्होंने खुदको साइड कर लिया। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया के साथ भी राठौड़ कुछ वक्त तक लगकर रहे। बाद में केंद्रीय नेताओं से ज्यादा सम्पर्क बढ़ा लिए और वसुंधरा-पूनिया खेमे से खुदको जुदा कर लिया। हालांकि केंद्रीय मंत्रियों और प्रदेश नेतृत्व के जरिए ही राठौड़ अब तक पार्टी हाईकमान के टच में रहे हैं। आरएसएस नेताओं में भी उनकी ज्यादा मजबूत पकड़ और बैठक नहीं रही है।

3.गजेंद्र सिंह शेखावत- 

केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को भी सीएम फेस के तौर पर देखा जाता है। गजेंद्र सिंह भी स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत की तर्ज पर राजपूत समाज से आते हैं। मूल रूप से शेखावाटी से इनका परिवार निकला है, लेकिन जोधपुर में ही रहते और रचे-बसे हैं। गजेंद्र सिंह शेखावत ने सीएम अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री पद पर रहते उनके पुत्र वैभव गहलोत को पिछला लोकसभा चुनाव हराया है। जिसके बाद गहलोत और गजेंद्र सिंह के रिश्ते भी तल्ख हो गए।  गजेन्द्र सिंह शेखावत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी सरकार को लगातार घेरते रहे हैं। गहलोत पूरी तरह उनके टारगेट पर हैं। गजेंद्र सिंह लगभग हर महीने और कभी-कभी हर हफ्ते ही राजस्थान में दौरे करते रहे हैं। वीकेंड्स और छुट्टी के दिनों में खास तौर पर जोधपुर में कैम्प करते हैं और राजधानी जयपुर में भी कोर कमेटी की बैठकों, आंदोलनों में हिस्सा लेते आए हैं। शेखावत राजस्थान में जनसुनवाई भी करते हैं। सोशल मीडिया पर भी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ते। गजेंद्र सिंह केंद्रीय कैबिनेट में होने के कारण बीजेपी की टॉप लीडरशिप से डायरेक्ट टच में हैं। पीएम मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से रेग्युलर उनकी मुलाकात और बातचीत होती रहती है। जोधपुर से होने के कारण वह सीएम गहलोत और राजस्थान का फीडबैक भी केंद्र को देते रहते हैं।
बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले नेशनल सेक्रेटरी अलका गुर्जर ने सचिन पायलट के विधानसभा क्षेत्र टोंक में एक रैली के दौरान कहा था कि- ‘मैं यह कहना चाहूंगी कि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत राजस्थान की जनता को नेतृत्व प्रदान करें और इस भ्रष्टाचार सरकार का अंत करें।’

गजेंद्र सिंह शेखावत के लिए नेगेटिव पॉइंट संजीवनी क्रेडिट सोसाइटी के कथित घोटाले में उनका नाम आना है। इसके साथ ही राजस्थान की कांग्रेस सरकार के सामने आए सियासी संकट के वक्त विधायकों की खरीफ फरोख्त संबंधी मामले में कथित फोन टैपिंग केस में भी उनकी आवाज सीएम और सरकार के मंत्रियों ने बताई है। उन पर षड़यंत्र कर चुनी हुई सरकार गिराने की कोशिश के आरोप हैं। विवादों में होने के कारण सीएम फेस की दावेदारी पर सवाल भी खड़े होते रहे हैं।

4.सतीश पूनियां-

विधानसभा के उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं। पिछले 3 साल 7 महीने तक उन्होंने राजस्थान में बीजेपी का संगठन बखूबी सम्भाला है। सतीश पूनिया जाट किसान परिवार से हैं और बिजनेस से जुड़े हैं। पार्टी का संगठन राजस्थान में 52 हजार में से 48 हजार बूथों तक उन्होंने खड़ा किया था। जिला, शक्ति केंद्र, मंडल, पन्ना प्रमुख अभियान को मजबूती दी। पूनियां जयपुर के आमेर से बीजेपी विधायक हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अच्छे संबंध रहे हैं। साथ ही आरएसएस से जुड़े होने के कारण संघ में पूनियां की अच्छी पकड़ है। उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाने में भी संघ का बड़ा रोल रहा था। सतीश पूनियां को लेकर प्रभारी अरुण सिंह ने भी कहा है कि उनकी आगे महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। पीएम मोदी इससे पहले देशभर के बीजेपी प्रदेशाध्यक्षों के सम्मेलन में राजस्थान बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष रहे सतीश पूनियां की मंच से तारीफ भी कर चुके हैं। उन्हें 3 साल के कार्यकाल से ज्यादा वक्त 3 साल 7 महीने तक प्रदेश में जिम्मा सौंपा गया। सतीश पूनिया ने कई बार बड़े आंदोलन किए। रीट पेपर लीक मामले में जयपुर में पैदल मार्च और घेराव के दौरान उन्हें पुलिसकर्मियों द्वारा बेरिकेट्स से धक्का दिए जाने पर गिरने से पैर भी फ्रेक्चर हो गया था। पूनिया के कई बार चोटें आईं।

सतीश पूनिया की सीएम फेस दावेदारी में सबसे बड़ा रोड़ा वसुंधरा राजे खेमे का उनके एंटी होना है। पूनिया केवल 1 बार के ही विधायक हैं, जबकि उनसे बहुत वरिष्ठ विधायक राजस्थान में मौजूद हैं। बाकी सारे नेता पूनियां से वरिष्ठ ही हैं। पूनियां प्रदेशाध्यक्ष रहते पार्टी में सबको साथ लेकर और साधकर नहीं चल सके। गुटबाजी पर लगाम नहीं लगा सके। पार्टी हाईकमान भी इसी बात से लगातार चिन्तित रहा। केंद्रीय मंत्रियों और सीएम फेस के अन्य दावेदारों से उनकी पटरी नहीं बैठी। सांसद डॉ किरोड़ीलाल मीणा से भी उनकी अदावत रही। यहां तक कि किरोड़ीलाल मीणा ने अपने आंदोलन और धरना स्थल पर नहीं पहुंचने और युवाओं के मुद्दों को नहीं उठाने पर सतीश पूनिया के खिलाफ बयान देकर निशाना भी साधा था। पूनिया उन्हें भी साथ लेकर आंदोलन नहीं कर सके।

5.अर्जुनराम मेघवाल-

केंद्रीय संस्कृति और संसदीय कार्य मंत्रालय में राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल राजस्थान के नहरी क्षेत्र बीकानेर से लोकसभा सांसद हैं। अर्जुनराम मेघवाल पूर्व आईएएस अफसर रहे हैं। सादगीपूर्ण तरीके से रहने और पिछले दिनों साइकिल से संसद पहुंचने वाले मंत्री के तौर पर भी अपनी पहचान बना चुके हैं। अर्जुनराम मेघवाल दलित मेघवाल समाज से आते हैं। उन्हें बीजेपी में एससी वर्ग से सीएम फेस के रूप में देखा जाता है। अर्जुनराम मेघवाल बीजेपी राजस्थान कोर कमेटी में भी शामिल हैं। साथ ही पिछले दिनों मानगढ़ धाम पर पीएम मोदी की बड़ी सभा भी उनके मंत्रालय ने करवाई थी। जिसमें आदिवासी-दलित समाज को बड़ा मैसेज देने की कोशिश की गई थी। पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मेघवाल के अच्छे राजनीतिक संबंध हैं। राजस्थान में बीजेपी नेताओँ की घर वापसी और पार्टी में नए नेताओं की जॉइनिंग संबंधी कमेटी के भी अर्जुनराम मेघवाल अध्यक्ष हैं। देवी सिंह भाटी समेत कई नेताओं को अब तक कमेटी में बीजेपी में वापस नहीं आने दिया है, जो वसुंधरा राजे ग्रुप के माने जाते हैं और नाराज होकर पार्टी छोड़ गए थे या कार्रवाई के लिए बाहर कर दिए गए थे।

लेकिन अर्जुनराम मेघवाल को यदि बीजेपी केंद्र से राज्य की राजनीति में फिर से लेकर आती है, तो कई सवाल भी खड़े होंगे। उनका विरोध करने वाले भी मौजूद हैं। अर्जुनराम मेघवाल और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया एक ही ग्रुप में माने जाते हैं। पिछले दिनों अर्जुनराम मेघवाल ने झुंझुनूं में हुई बीजेपी की कार्य समिति में नेताओं से मंच से साफ कह दिया था कि ‘डूबता हुआ सूरज’ देखना बंद करो। सनसेट पॉइंट अंग्रेजों के बनाए हुए हैं। ‘उगते हुए सूरज’ सतीश पूनिया के नेतृत्व में देखना शुरू करो। उगते सूरज को पानी चढ़ाओ। इसी सीधे तौर पर वसुंधरा राजे के खिलाफ उनका बयान माना गया। ऐसे में राजे खेमे में इससे नाराजगी भी है। क्योंकि ये बयान वसुंधरा राजे के पीठ पीछे कहा गया था। तब राजे और अरुण सिंह सभागार में मौजूद नहीं थे। इसलिए दूसरा खेमा उनके नाम पर विरोध भी कर सकता है।

6.डॉ किरोड़ीलाल मीणा-

बीजेपी के राज्यसभा सांसद डॉ किरोड़ीलाल मीणा एक राजनेता होने के साथ ही चिकित्सक भी हैं। किरोड़ीलाल मीणा पिछली वसुंधरा राजे सरकार के मंत्री रह चुके हैं। इनकी पत्नी गोलमा देवी भी पूर्व में मंत्री रही है।  3 नवंबर 1951 का जन्म है और 70 साल से ज्यादा उम्र के हैं। पूर्वी राजस्थान में डॉ किरोड़ीलाल मीणा को दमदार नेता और आंदोलनकारी के रूप में पहचाना जाता है। युवाओं के मुद्दों, पेपर लीक, कोविड पीरियड में फीस वसूली, बेरोजगारी और बेरोजगारी भत्ता, आदिवासी, दलित समाज के मुद्दों, पानी-बिजली, किसानों के मुद्दों पर वह आंदोलन करते रहे हैं। डॉ किरोड़ीलाल मीणा की रैली और सभाओं में हजारों लोगों की भीड़ जुटती है। वह पुलिस और सरकार को चकमा देकर आंदोलन करने वाले नेता के रूप में भी पहचाने जाते हैं। हमेशा जनता के काम करने के लिए तैयार रहते हैं और किसी को अपने पास से निराश नहीं लौटाते हैं। डॉ किरोड़ीलाल मीणा को इसीलिए लोग बाबा के नाम से भी पुकारते हैं। मीणा आदिवासी समाज के हर क्षेत्र के लोगों और सरकारी कर्मचारियों-ब्यूरोक्रेसी में भी डॉ किरोड़ीलाल की जबरदस्त पकड़ है। लोकसभा चुनाव में डॉ किरोड़ीलाल मीणा का इस्तेमाल बीजेपी मध्यप्रदेश जैसे पड़ोसी राज्य में भी करती रही है। किसान नेता के रूप में इनकी मजबूत छवि है।
डॉ किरोड़ीलाल मीणा पर भी क्रेडिबिलिटी का संकट है। वह वसुंधरा राजे, सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्रियों किसी से पटरी नहीं बैठा सके। डॉ किरोड़ीलाल मीणा पर पार्टी से अलग हटकर खुदके आंदोलन और धरने प्रदर्शन करने के आरोप लगते रहे हैं। पहले डॉ किरोड़ीलाल मीणा ने राजपा पार्टी भी जॉइन कर ली थी। इनकी पत्नी गोलमा देवी ने पूर्ववर्ती गहलोत सरकार में मंत्री पद पा लिया था। फिर बाद में अपने पति के अपमान से नाराज होकर 2009 में तत्कालीन गहलोत सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। पत्नी गोलमा देवी राजस्थान की राबड़ी देवी की तरह निरक्षर मंत्री के रूप में चर्चित रही थीं। डॉ किरोड़ीलाल मीणा के लिए कहा जाता है कि वह पार्टी नेताओं को तवज्जो नहीं देते हैं। पिछले दिनों क्लार्क्स आमेर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सम्मान कार्यक्रम के दौरान राजेंद्र राठौड़ से भी डॉ किरोड़ीलाल भिड़ गए और कहासुनी कर दी थी। जिसका वीडियो भी खूब वायरल हुआ। उन पर मीणा समाज विशेष और आदिवासी समाज की राजनीति करने के आरोप लगते रहे हैं।

7.ओम बिरला-

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला दो बार सांसद चुने जा चुके हैं। मूल रूप से कोटा के रहने वाले हैं और कोटा-बूंदी लोकसभा क्षेत्र से मौजूदा सांसद हैं। ओम बिरला राजस्थान विधानसभा में तीन बार विधायक और एक बार संसदीय सचिव पद पर भी पूर्व में रह चुके हैं। बिरला भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं। बिरला वैश्य वर्ग से आते हैं। व्यापारियों और आम लोगों में इनकी खासी पकड़ है। ओम बिरला सभी नेताओं को साधकर चलने वालों में गिने जाते हैं। बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व, पीएम मोदी, जेपी नड्डा और अमित शाह समेत तमाम मंत्रियों से बहुत घनिष्ठ संबंध रखते हैं। ओम बिरला धर्म-कर्म में बहुत आस्था रखते है। किसानों के मुद्दों पर प्रदेश की गहलोत सरकार से लगातार गिरदावरी और मुआवजे की मांग रखते रहे हैं। बिरला लगातार अपने क्षेत्र और प्रदेश में दौरे करते रहते हैं। ओम बिरला को भी सीएम फेस के रूप में दावेदार माना जाता है।

ओम बिरला के सीएम फेस की दावेदारी में कुछ अड़चनें भी हैं। राजस्थान में अगर ओम बिरला को विधानसभा चुनाव लड़ाया जाता है, तो यह उनका कद करने वाली बात मानी जाएगी। अब उन्हें स्पीकर बनने के बाद केंद्रीय राजनीति की अच्छी समझ और पकड़ हो चुकी है। पार्टी के लिए वह एक एसेट बन चुके हैं। राजस्थान में ओम बिरला का भी विरोधी खेमा मौजूद है। वसुंधरा राजे, सतीश पूनिया जैसे नेताओं से बिरला की पटरी शुरू से ही नहीं बैठ सकी। बिरला स्पीकर रहने के कारण राजस्थान की सियासत और आंदोलनों में ज्यादा वक्त नहीं दे सके और संवैधानिक पद होने के कारण प्रदेश कांग्रेस और सरकार को खुलकर घेर नहीं सके।

8.अश्विनी वैष्णव-
केंद्रीय रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव का नाम भी सीएम फेस के दावेदारों में गिना जा रहा है। क्योंकि अश्विनी वैष्णव भी मूल रूप से राजस्थान के जोधपुर के निवासी हैं। वह ब्राह्मण चेहरा हैं। पिछले दिनों जयपुर में हुए ब्राह्मण समाज के बड़े सम्मेलन में अश्विनी वैष्णव मंच पर मौजूद टॉप नेताओं में शामिल थे। ब्राह्मण मुख्यमंत्री और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग भी मंच से उठी थी। अश्विनी वैष्णव के रेल मंत्री रहते राजस्थान में सबसे ज्यादा रेल बजट अब तक मिला है। पीएम मोदी भी इस बात को पिछले दिनों कह चुके हैं। वंदे भारत सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन भी विधानसभा चुनाव से पहले अजमेर-जयपुर-दिल्ली के बीच शुरू कर दी गई है। अश्विनी वैष्णव 1994 बैच के ओडिशा कैडर के आईएएस अफसर रहे हैं। जिन्हें जुलाई 2019 में केंद्रीय नेतृत्व की पसंद पर ओडिशा से राज्यसभा सांसद के तौर पर चुनाव लड़वाकर जिताया गया। फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर रेलवे मिनिस्ट्री का महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपा गया। राजस्थान में ब्राह्मणों की आबादी 8 फीसदी तक मानी जाती है। प्रदेश में गहलोत, वसुंधरा और स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत से पहले ज्यादातर मुख्यमंत्री ब्राह्मण समाज से आते रहे हैं। राजस्थान के पहले 4 मुख्यमंत्रियों में से 3 ब्राह्मण थे। हालांकि ये बात और है कि बाद में यह वर्चस्व खत्म हुआ और ब्राह्मण समाज से अंतिम मुख्यमंत्री करीब 33 साल पहले बना था।

अश्विनी वैष्णव का नेगेटिव पॉइंट यही है कि वह केंद्रीय राजनीति में ब्यूरोक्रेसी से लाए गए हैं। राजस्थान में नहीं ओडिशा कैडर में वह आईएएस रहे हैं। यहां उनकी राजनीतिक और समाजिक पैठ नहीं रही है। राजस्थान में सीएम फेस के लिए नेताओं की खींचतान और कतार पहले से मौजूद है। जोकि काफी स्ट्रॉन्ग लीडरशिप है और प्रदेश के विधायकों में उनकी स्वीकार्यता है। मुख्यमंत्री फेस बनने के लिए भी या तो विधानसभा आम चुनाव लड़कर विधायक बनना होगा या 6 महीने के अंदर कोई सीट खाली करवाकर वहां से पार्टी को इन्हें चुनाव लड़वाकर जिताना होगा। राजस्थान के नेताओं को साधना और सियासी समीकरणों को समझने के लिए भी प्रदेश का अनुभव होना जरूरी है। जो वैष्णव को फिलहाल नहीं है।

अमर उजाला एनालिसिस
अमर उजाला एनालिसिस कहता है कि बीजेपी की स्ट्रेटेजी यह है पीएम मोदी और केंद्रीय योजनाओं-उपलब्धियों के आधार पर ही राजस्थान में पार्टी विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती है। लोकसभा में जो मुद्दे रहने वाले हैं, उन मुद्दों के आधार पर पार्टी राज्य का चुनाव लड़ना चाह रही है। इसे वोटो के पोलराइजेशन और बड़े लाभार्थी वर्ग को साधकर चुनाव लड़ने की कोशिशों के तौर पर भी देखा जा रहा है। पार्टी चाहती है कि अपने विश्वस्त व्यक्ति को विधानसभा चुनाव होने और बहुमत मिलने के बाद सीएम फेस घोषित किया जाए। चुनाव से पहले सीएम फेस घोषित करने पर अंदरूनी कलह और भीतराघात का खतरा बढ़ जाएगा। 6-7 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने है। ऐसे माहौल के बीच पार्टी फिलहाल मौजूदा गुटबाजी को दूर कर संगठन को मजबूत करने पर फोकस कर रही है। सीएम फेस घोषित करने की एक स्ट्रेटेजी यह भी है कि आचार संहिता लगने के बाद अंतिम दिनों में ही अचानक सीएम फेस घोषित किया जा सकता है। सभी नेताओं को एकजुट होकर चुनाव लड़ने की सख्त नसीहत दी जा सकती है। इसके लिए बीजेपी फिलहाल संगठनात्मक ढांचे, बूथ मैनेजमेंट और पन्ना प्रमुख सिस्टम को मजबूत करना चाह रही है।

Politics: 8 Faces for Cm in Bjp Rajasthan, assembly Elections after 7 months, Question about Vasundhara raje? राजस्थान में 7 महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं। सीकर आए पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को सीएम फेस बनाने पर बीजेपी के जीतने की सम्भावना बढ़ने की बात कहकर सियासी पारा बढ़ा दिया है। क्योंकि प्रदेश में सीएम फेस के 8 बड़े दावेदार हैं।

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