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पार्कों के रखरखाव पर हर साल 80 लाख का खर्च पर मजदूरों को मानदेय भी नहीं मिल रहा

  • ठेकेदार का टेंडर निरस्त कर दिया, उसे मजदूरी देनी होगी: सभापति

महिलाएं बोलीं-6 महीने के 18 हजार रुपए बाकी, घर चलाना मुश्किल हो रहा

भास्कर संवाददाता | चित्तौड़गढ़

शहर में पार्कों के रखरखाव पर सालाना 60 से 80 लाख रुपए खर्च होते हैं। कुछ साल से नगर परिषद ये काम ठेके पर करा रही है, लेकिन ठेकेदार न तो पार्क सलीके से रखते हैं और न काम करने वाले मजदूरों को समय पर पगार देते हैं। भास्कर ने गत 3 टेंडर और पार्कों की पड़ताल की। हर ठेकेदार के खिलाफ मजदूरों को रुपए नहीं देने की शिकायतें सामने आईं। एक ठेकेदार पर तो लेबर कोर्ट में केस दर्ज हो चुका है। नगर परिषद उसे ब्लैकलिस्टेड कर आधा भुगतान रोक रखा है। काम करने वाली 65 महिलाएं मजदूरी के लिए परेशान हैं। शहर के 60 वार्डों में नगर परिषद के करीब 80 पार्क हैं। जिनके रखरखाव के लिए सालाना ठेका होता है।

मजदूरी भुगतान के लिए नगरपरिषद, ठेकेदार को जिम्मेदार बता रही है। महिलाओं का कहना है कि उनको हर माह 3 हजार रुपए मिलने थे। 6 महीने का मानदेय नहीं मिलने से घर चलाना मुश्किल हो रहा है। नगरपरिषद, कलेक्ट्रेट व उपश्रम कार्यालय के चक्कर काट रहीं हैं। यदि नगर परिषद ठेकेदार का पैसा काट चुकी है तो वो ही हमें दिलवा दे। ठेका नंबर 3: अभी कार्यरत इंदौर की ठेकेदार फर्म भी समय पर नहीं दे रही मजदूरी नगरपरिषद ने पार्कों के रखरखाव का ठेका अभी इंदौर की कंपनी को दिया हुआ है। पदमिनी पार्क में कार्य करने वाली कच्ची बस्ती की शरीफा व लीलाबाई का कहना था कि हमारा तीन महीने का पैसा बाकी है। हर महीने तीन हजार रुपए तय थे।

ठेका नंबर1: 80 महिलाओं को 4 माह का पैसा नहीं, कलेक्टर, लेबर कोर्ट के दखल पर मिला गत साल 12 मई को 8-10 महिलाओं ने कलेक्ट्रेट की जनसुनवाई में शिकायत दर्ज कराई। जिसके अनुसार वे शहर के पार्कों में सिंचाई, कटिंग आदि कार्य करती हैं। उनके सहित 80 महिलाओं को चार माह से पगार नहीं मिली। कलेक्टर ने मामला उपश्रम आयुक्त के पास भेजा। जहां से 7 दिन बाद ही ठेकेदार व नगरपरिषद को नोटिस चले गए। तब जाकर ठेकेदार ने मजदूरों का पैसा दिया। नगरपरिषद ने बाकायदा रसीदें पेशकर जवाब दिया कि उसने ठेकेदार से भुगतान करवा दिया।

ठेका नंबर 2: 65 महिलाएं केस लड़ रहीं, 6 महीने में 6 पेशियां फिर भी अब तक भुगतान नहीं इस साल 9 जनवरी से 65 महिलाएं फिर लेबर कोर्ट में चक्कर काट रही हैं। पार्कों में साफ-सफाई, रखवाली, पानी पिलाई, देखरेख की, लेकिन उदयपुर की ठेकेदार फर्म 6 माह से भुगतान नहीं कर रही। उपश्रम आयुक्त ने नगरपरिषद व ठेकेदार को समझौता वार्ता के नोटिस भेजे। पहली पेशी पर दोनों पक्ष नहीं पहुंचे, न कोई जवाब आया। दूसरी पेशी 27 जनवरी को ठेकेदार ने जवाब के लिए समय मांगा। उसने 9 फरवरी को जवाब दिया कि उसका भी नगरपरिषद से भुगतान बाकी है। अगली पेशी पर 5 मई को फिर महिलाएं पहुंचीं लेकिन ठेकेदार नहीं आया। अब उपश्रम आयुक्त ने समझौते की फाइल बंद कर केस दर्ज करा नोटिस जारी कर दिया। नगरपरिषद जवाब दे चुकी है कि उसने काम का ठेका और भुगतान कर दिया है। अब ठेकेदार ही उत्तरदायी है। अगली पेशी 28 जुलाई है।

नगरपरिषद सभापति संदीप शर्मा का कहना है कि ठेकेदार ने शर्तों के अनुसार कार्य नहीं किया तो उसके भुगतान में कटौती कर टेंडर भी निरस्त कर दिया। पार्कों के रखरखाव, संरक्षण का सालाना खर्च 60 से 80 लाख रुपए होता है, लेकिन इस ठेकेदार को 37.51 लाख रुपए का ही भुगतान किया गया। क्योंकि उसने शर्तों के अनुसार काम नहीं किया। मजदूरों के ठेकेदार के अधीन काम करने से नियमानुसार नगर परिषद उनको पेमेंट नहीं कर सकती। ठेकेदार जिम्मेदार है। मामला लेबर कोर्ट में चल रहा है, उसे पेमेंट करना होगा।

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